डॉ. ईशु साहू , डॉ. मनीष चौरसिया , श्री मनीष आर्या, डॉ. शालू अब्राहम एवं श्री तुषार मिश्रा
कृषि विज्ञान केन्द्र, गरियाबंद
गुणवत्तायुक्त सब्जी उत्पादन हेत गणुवत्तायुक्त बीज अत्यन्त महत्वपूर्ण होते हैं। सब्जियों में कुल बीज विस्थापन दर लगभग 80 प्रतिशत है और इसमें सुधार की आवश्यकता तथा सम्भावनाएं है। अधिक उपज देने वाली किस्मों के अन्तर्गत सब्जी क्षेत्रफल को बढ़ाने के लिए एक योजनाबद्ध रणनीति की आवश्यकता है और इस प्रयास में बीज से बीज तक किसानों की सहभागिता अत्यन्त आवश्यक है और इसके लिए उन्हें तकनीकी अज्ञानता से उबरकर तकनीकी ज्ञान अर्जित करना होगा जिससे इच्छित परिणाम मिल सकें क्योंकि यदि उन्नत किस्मों के बीजोत्पादन के समय उनकी शुद्धता बनाए रखने पर तकनीकी ध्यान न दिया जाए तो कुछ समय बाद उनके गुणों का ह्नास हो जाता हैं। बीजोत्पादन की गुणवत्ता केवल अनुवांशिक कारकों पर ही नहीं अपितु उत्पादन के समय वातावरणीय कारकों पर भी निर्भर करती है जिन पर किसान भाइयों को ध्यान देने की आवश्यकता हैं। शुद्ध गुणवत्तायुक्त बीजों के उत्पादन के लिए उन कारकों की जानकारी आवश्यक है जो बीज की शुद्धता तथा गुणवत्ता ह्नास के कारण हो सकते हैं। यदि किसान भाई स्वयं अपना शुद्ध बीज बना लेंगे तो बाजार से लेने में लगने वाले पैसों की बचत के अतिरिक्त अपने हिसाब से उपलब्धता भी सुनिश्चित हो सकेगी।
यदि बीज अच्छा होगा तो ही फसल अच्छी होगी, और बीज घटिया होगा तो उत्पाद भी घटिया होगी। जब तक प्रारम्भ में किसी विश्वसनीय स्त्रोत से बीज नही लिया जाएगा तब तक उसकी शुद्धता बनाए रखने का किसान द्वारा प्रयास सफल नही होगा। प्रारम्भ में जितना अधिक शुद्ध बीज होगा बीजोत्पादन के दौरान उतना ही कम प्रयास उसकी शुद्धता को बनाए रखने में करना होगा। इसके लिए आवश्यक है कि बीज किसी विश्वसनीय संस्था से प्राप्त किया जाए। बीज उत्पादन के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला बीज अनुवांशिक रूप से शुद्ध होना चाहिए।
फसल एवं किस्म का चुनाव
साधारणतया बीज स्थानीय माँग के अनुरूप ही उत्पादित किए जाते हैं। अतः केवल उन फसलों का ही चयन करे। जिनकी स्थानीय मांग हो। इसके साथ ही इन फसलों की उन किस्मों को लगाना चाहिए जिनका किसान भाई के क्षेत्र विशेष में प्रदर्शन संतोषजनक हो उदाहरण के लिए हमारे मैदानी क्षेत्रों में पछेती फूलगोभी या पत्तागोभी का बीज बनाया जाय तो सफल नही होगा क्योंकि इनका बीज उत्पादन अत्यन्त कम तापमान वाले क्षेत्रों में ही सम्भव है जबकि अगेती फूलगोभी का बीज मैदानी क्षेत्रों में बनाया जा सकता है।
खेत का चुनाव
बीजोत्पादन हेतु खेत का चयन तो बहुत ही महत्वपूर्ण है। खेत में चुनाव के समय ध्यान रखें कि-
खेत की मृदा हानिकारक कीटों एवं मृदा जनित रोगों से मुक्त हो। खेत की मृदा की संरचना व प्रकार बोई जाने वाली फसल के अनुकूल हो। खेत की मिट्टी में पर्याप्त उर्वरा शक्ति हो। पूर्व में उसी खेत में बोई गई फसल के आगामी फसल में भिन्नता हो। खरपतवार की समस्या न हो। फसल विशेष की उसी फसल वाले आस-पास के दूसरे खेतों से निर्धारित पृथक्करण दूरी बना कर रखी जाए।
पृथक्करण दूरी
पृथक्करण दूरी वह न्यूनतम दूरी है जो उसी फसल की दूसरी किसी किस्म व लगाई गई किस्म के बीच होनी चाहिए ताकि पर-परागण या भौतिक/यांत्रिक प्रदूषण से बीज को बचाया जा सके तथा शुद्ध बीज प्राप्त किया जा सके। यह विभिन्न सब्जियों के लिए अलग-अलग होती है। टमाटर के प्रमाणित बीज स्तर की शुद्धता के लिए पृथक्करण दूरी कम से कम 25 मीटर होनी चाहिए, बैंगन के लिए 150 मी., मिर्च के लिए 200 मी0, लोबिया तथा मटर के लिए 5 मी., भिण्डी के लिए 200 मी., गोभीवर्गीय सब्जियों तथा मूली के लिए 1000 मी., गाजर के लिए 800 मी. तथा प्याज एवं कद्दूवर्गीय सब्जियों के लिए 1500 मीटर दूरी होनी चाहिए।
फसल निरीक्षण
बीज हेतु लगाई गई फसल का प्रारम्भ से अन्त तक नियमित निरीक्षण अत्यन्त आवश्यक है। बीज में मिश्रण बचाने के लिए जो भी पौधे लगाई गई किस्म के गुणों से मेल न खाते हो उन्हें खेत से तुरन्त हटा देना चाहिए। बीज फसल से अवांछनीय पौधों को निकालने के लिए कम से कम कितनी बार फसल निरीक्षण करना आवश्यक है तथा किस-किस अवस्था में, कुछ मुख्य सब्जी फसलों में निम्नानुसार है।
टमाटर, बैंगन, मिर्च में कम से कम तीन निरीक्षण- पहला फूलने से पहले, दूसरा फूलने और फल लगते समय तथा तीसरा फल परिपक्वता के समय। मटर तथा लोबिया में फूल लगने के पहले, फूलते समय तथा खाने योग्य फली की अवस्था में। मूली में बुआई के 20-30 दिन बाद, रोपण के समय व फूलते समय जबकि गाजर में बुआई के 20-30 दिन बाद, रोपण के समय, फूलते समय तथा परिपक्वता के समय। गोभीवर्गीय सब्जियों में कम से कम चार निरीक्षण- खाने योग्य अवस्था से पहले, फूल/शीर्ष का बनना प्रारम्भ होने पर, जब अधिकतर पौधों में फूल/शीर्ष बन गया हो तथा चौथा फूलते समय। कद्दूवर्गीय सब्जियों में कम से कम तीन निरीक्षण फूलने के पहले, फूलते और फलते समय तथा परिपक्व फल की अवस्था में। बीज फसल का नियमित निरीक्षण किया जाना चाहिए और जब भी कोई अवांछित पौधा नजर आए उसे निकाल देना चाहिए।
उचित परिपक्वता
उचित परिपक्वता की अवस्था मे बीज हेतु फलों की तुड़ाई भी गुणवत्तायुक्त बीजोत्पादन की आवश्यक कड़ी है। यदि परिपक्वता से पहले तुड़ाई कर लेते हैं तो गुणवत्ता प्रभावित होती है। और यदि देर तक छोड़ देते हैं तो अति परिपक्वता से कुछ बीज खेत में ही गिरकर नष्ट हो जाता है। इसके अतिरिक्त अति परिपक्वता की स्थिति में कीटों या मौसम की मार का भी बीजों को सामना करना पड सकता है जिससे उसकी गुणवत्ता प्रभावित होती है जैसे भिण्डी में जब फल अधिक परिपक्व हो जाते है तो जोड़ पर से फलियाँ फटने लगती है और बीज दिखाई देने लगते हैं। इन फलियों पर लाल रंग के कीट देखे जा सकते हैं तथा मौसम बिगड़ने पर इन बीजों की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है क्योंकि इनके ऊपर कोई आवरण नही रहता ।
अलग-अलग सब्जियों में बीज हेतु परिपक्वता की पहचान अलग-अलग लक्षण हैं टमाटर तथा मिर्च में जब फल पककर लाल हो जाएं, बैंगन में सुनहरे पीले, रंग हो जाने पर, लौकी, नेनुआ तथा तरोई में फल की बाहरी दीवार सूखकर कड़ी हो जाने पर, करेले में फल सुनहरे पीले तथा अन्दर का गूदा लाल रंग का हो जाय, पेठा में 122 फल पर सफेद चूर्ण जैसा दिखने लगे जो छूने पर उंगली में लग जाए, तरबूज में जब फल का वृन्त सूख जाए तथा फल को उंगली से ठोंकने पर धब-धब की आवाज आए जबकि कुम्हड़ा में फल का रंग हरे से पीला हो जाने पर, गोभी तथा मूली में जब अधिकतर छीमी पक कर पीले रंग की हो जाए, लोबिया में फल पककर सूखे से प्रतीत होने लगे मटर में जब फलियाँ तथा पौधे दोनों ही पककर सूख जाएं, भिण्डी में बीज तैयार होने पर फलिया सूखी सी दिखाई देती है तथा बीजों का रंग गहरा हो जाता है, भिण्डी में यह ध्यान रखना चाहिए कि फलियाँ पकी तो हो लेकिन जोड़ों पर से उनके फटने के पहले ही बीज निकाल लिया जाए।
बीजों का निष्कर्षण
बीजों का निष्कर्षण मुख्य रूप से दो प्रकार से करते है या तो शुष्क निष्कर्षण या फिर गीला निष्कर्षण। टमाटर तथा बैंगन में गीला निष्कर्षण करते हैं। बीज निकालने के लिए टमाटर के पके फलों को मसलकर किसी प्लास्टिक या मिट्टी के बर्तन में रखें, बैंगन में पके फलों को छोटे टुकड़ों में काटकर बिना धातु वाले पात्रों में रखकर, पानी में तापमान के अनुसार 2-3 दिन तक सड़ने देते हैं। इस लुगदी को पानी में डालते हें तो बीज नीचे बैठ जाते हैं छिलका तथा गूदा तैरने लगता है जिसे धोकर आसानी से बीजों को अलग कर सुखा लेते हैं। खीरा तथा खरबूजा में भी गीले निष्कर्षण द्वारा बीज निकाले जाते है। लोबिया, मटर, भिण्डी, प्याज, राजमा, मूली, गोभी आदि में शुष्क निष्कर्षण द्वारा बीज निकाले जाते हैं। जब लगभग 90 प्रतिशत फलिया परिपक्व हो सूखने लगें तब उन्हें एकत्रकर, मड़ाई तथा ओसाई करके बीज निकाल लेते हैं। लौकी, नेनुआ तथा तरोई में फलों के ऊपरी सूखे खोल को तोड़कर अन्दर से बीज बाहर निकाल लेते हैं।
बीज प्रसंस्करण
निष्कर्षण किए गए बीजों को सुरक्षित नमी के स्तर तक सुखाने, अवांछित तत्वों, खरपतवार के बीजों, दूसरी फसल के बीजों तथा कटे-टूटे बीजों को यथासम्भव अलग करने, एक ही आकार के बीजों को छांटने आदि क्रियाएं बीज प्रसंस्करण के अन्तर्गत आती है जिससे कि बीजों की सम्पूर्ण गुणवत्ता में धार किया जा सके। साधारण रूप से बीज प्रसंस्करण का तात्पर्य उपरान्त निकाले गए बीजों को विपणन योग्य बनाने की प्रक्रिया से है।
बीजों का भण्डारण
बीज भण्डारण के समय अधिक नमी की मात्रा तथा उच्च तापमान बीज की जमाव क्षमता को कम करते हैं। अतः सुरक्षित भण्डारण की स्थिति वह है जहा नमी तथा तापमान अधिक न हो तथा नियंत्रण में रहे। कम तापमान पर बीज भण्डारण करनें से बीज की आयु लम्बी हो जाती है। सारांश में इस बात को कहे तो आप जितने कम तापमान तथा नमी की अवस्था में बीज भण्डारण के लिए उपलब्ध करा सकते हैं उतना ही अच्छा होगा।
बीजों का प्रमाणीकरण
बीजों की गुणवत्ता नियंत्रण हेतु बीज प्रमाणीकरण एक वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित रूप से बनाई गई तथा कानूनी रूप से स्वीकृत प्रक्रिया है जो कि विभिन्न चरणों में सम्पादित की जाती हैः
- बीज स्त्रोत का सत्यापन
- बीज फसल का खेत
- तुड़ाई उपरान्त, प्रसंस्करण एव पैकिंग के समय पर्यवेक्षण
- बीज नमूना लेना तथा उसका विश्लेषण
- प्रमाणपत्र एवं प्रमाणीकरण टैग जारी करना तथा पैकिंग को मुहबन्द करना।
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