कन्हैया लाल एवं सूर्यकांत सोनवानी, कृषि अभियांत्रिकीय
इंदिरा गांधी कृषि विष्वविद्यालय रायपुर (छ.ग.)

रबी की फसल कट जाने के बाद अप्रैल से जून तक मिट्टी पलटने वाला हल या डिस्क प्लो (प्लाउ) से की जाने वाली जुताई को ग्रीष्मकालीन जुताई कहते हैं। इस समय की जुताई यथा सम्भव फसल काटते ही आरम्भ कर देनी चाहिए, क्योंकि फसल कटने के तुरन्त बाद मिट्टी में थोड़ी बहुत नमी रहती है और जुताई करने में आसानी रहती है। थोड़े समय पश्चात मिट्टी की नमी का वाष्पीकरण हो जाता है और खेत सूख जाते हैं। ऐसी अवस्था में चिकनी मिट्टी में गहरी जुताई करना कठिन हो जाता है। यह जुताई रबी की फसलें जैसे-गेहूँ, जौ, चना, सरसों, धनिया, एवं मेथी इत्यादि की कटाई के तुरन्त बाद करें। अप्रैल का अन्तिम सप्ताह या मई का प्रथम सप्ताह इसके लिए उपयुक्त होता है। जुताई के निम्न लाभ हैं।

1. मिट्टी की जलधारण क्षमता को बढ़ानाः- 
रबी की फसलों को काटने के बाद डिस्क प्लो या देशी हल से गहरी जुताई करें ताकि मानसून की पहली वर्षा का सारा पानी जमीन के अन्दर सोख लिया जावे। पहली वर्षा में वायुमण्डल में विद्यमान 79ः नाइट्रोजन वर्षा के पानी के साथ घुलकर सबसे अधिक आती है। यदि गर्मी की जुताई की गई है तो पहली वर्षा का सारा पानी खेत के अन्दर ही चला जाता है, उससे खेत की उर्वरा शक्ति में बढ़ोत्तरी होती है तथा जमीन में वर्षा का सारा पानी चले जाने के कारण भूमि के जल स्तर में भी वृद्धि होती है।

2. मृदा में वायु संचार को बढ़ानाः- 
मृदा में अच्छा वायु संचार तथा उचित मात्रा में मृदा जल को बनाये रखने के लिए आवश्यक है कि खेत में जैव पदार्थ मिलाकर अच्छी प्रकार से जुताई करें, जिससे जैवांश पदार्थ सड़कर पोषक तत्वों में बदल जावें। इस प्रकार से मृदा संरचना में वायु तथा जल दोनों ही उचित मात्रा में बने रहते हैं तथा सूक्ष्म जीवों को उचित मात्रा में ऑक्सीजन मिलती रहती है व हानिकारक गैस बाहर निकलती रहती है।

3. मृदा अपरदन को रोकनाः- 
बिना जुते खेत की मिट्टी कड़ी रहती है और उसकी जल अवशोषण की क्षमता भी कम होती है। जब वर्षा होती है तो उसमें वर्षा का पानी अच्छी प्रकार से प्रवेश नहीं कर पाता है और ढाल की तरह बहने लगता है। उसके साथ बहुत से मिट्टी के कण भी बह जाते हैं। इस प्रकार से ऊपर की हल्की सी परत जो कि बहुत उपजाऊ होती है, जो वर्षों बाद बन पाती है वह पानी के साथ बह जाती है। जुताई करने से मिट्टी मुलायम तथा भुरभुरी हो जाती है। उसकी जल अवशोषण शक्ति बढ़ जाती है इस प्रकार वर्षा का पानी उसमें सुगमता से प्रवेश कर जाता है, जिससे मृदा अपरदन कम हो जाता है।

4. खरपतवारों को नष्ट करनाः-
अधिकांश खरपतवारों एवं उसके बीजों को ग्रीष्मकालीन जुताई करके नष्ट किया जा सकता है। अतः गर्मियों में 45 - 48 डिग्री से. तापक्रम पर बार-बार जुताई करने से बहुवर्षीय खरपतवार भी नष्ट हो जाते हैं।

5. कीट पतंगो को नष्ट करनाः- 
बहुत से कीट फसल के अवशेषों में रहते हैं, प्रारम्भिक जुताई करते समय इन कीड़ों के अण्डे, प्यूपा तथा इल्ली या लार्वा भूमि की सतह पर आ जाते हैं। जहां बे चिड़ियों द्वारा खा लिऐ जाते हैं या फिर कड़ी धूप में नष्ट हो जाते हैं तथा बहुत से कीट जुताई आदि क्रियायें करते समय ही मर जाते हैं। इस प्रकार से फसलों के बहुत से हानिकारक कीट पतंगे 45-48° तापमान पर नष्ट हो जाते जाते हैं।

6. मिट्टी की भौतिक संरचना में सुधार करना ।

7. मिट्टी में जैव पदार्थ मिलानाः-गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद को खेतों में यों ही नहीं बिखेर देना चाहिए। ऐसा देखा जाता है कि कुछ किसान वर्मीकम्पोस्ट की खाद बड़ी मेहनत से तैयार करते हैं परन्तु अधिकांश किसान जानकारी के अभाव में खेत में छोटी-छोटी ढेरियों में डालकर काफी समय तक खुला छोड़ देते हैं अथवा मृदा के ऊपर ही बिखेर देते हैं ऐसा करने से खाद के तत्व सूर्य के प्रकाश तथा वायु तथा वातावरण में उड़ जाते हैं और मृदा में पौधों को बहुत कम मात्रा में प्राप्त होते हैं। अतः यह आवश्यक है कि खाद को खेत में डालने के बाद शीघ्र ही खेत में जोतकर अच्छी तरह मिला देना चाहिए। मिलाते समय खेत में पर्याप्त नमी भी होनी चाहिए। अतः खरीफ की फसल के काटने के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से डिस्क प्लो से गहरी जुताई अवश्य करें।