डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस यानी डीएसआर तकनीक से धान की खेती में धान के बीजों को सीधे मिट्टी में मशीन की मदद से डाला जाता है। मशीन धान की बुआई और खरपतवारनाशक का छिड़काव एक साथ करती है। धान की सीधी बुआई (DSR) और पारंपरिक रोपाई विधि से धान की खेती में बुनियादी अंतर ये है कि परंपरागत पद्धति में, किसानों को पहले नर्सरी में धान के पौधों को उगाना पड़ता है। इसके बाद पानी से भरे खेत में धान के पौधों की रोपाई होती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि डीएसआर विधि से धान की खेती में पानी और पैसे दोनों कम खर्च होते हैं। ऐसे में लगातार गिर रहे भूगर्भ जलस्तर को बरकरार रखना चैलेंजिंग है। धान की खेती और डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस यानी डीएसआर तकनीक से जुड़ी स्टडी के मुताबिक परंपरागत धान की खेती के दौरान एक किलो उत्पादन करने के लिए लगभग 5,000 लीटर पानी की जरूरत होती है। दूसरी ओर डीएसआर तकनीक से धान की खेती करने पर श्रमिकों की संख्या कम होने के अलावा 25 प्रतिशत बिजली की लागत भी बचती है। इसके अलावा पूरी फसल के दौरान 20 प्रतिशत तक पानी बचाने में भी मदद मिलती है। पंजाब और हरियाणा की सरकारें किसानों को डीएसआर तकनीक से धान उगाने के लिए प्रेरित कर रही हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, डीएसआर के माध्यम से बासमती चावल भी उगाया जा सकता है। कृषि विज्ञान केंद्र में धान की वेराइटी पर शोध करने वाले जानकारों के मुताबिक गैर-पोखर परिस्थितियों (non-puddle conditions) में भी बासमती की खेती की जा सकती है। इसका मतलब धान की बुआई के पहले खेतों में पानी भरे रखना जरूरी नहीं। डीएसआर तकनीक से धान लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में उगाए जा सकते हैं। दोनों राज्यों की सरकारों ने कहा है कि डीएसआर विधि से धान की खेती में किसानों को आर्थिक प्रोत्साहन और सहायता दी जाएगी। डीएसआर विधि से धान की खेती में नर्सरी तैयार करने की जरूरत नहीं पड़ती। परंपरागत रोपाई विधि में एक किलो धान पैदा करने में तीन से पांच हजार लीटर पानी का इस्तेमाल होता है। दूसरी ओर सीधी बिजाई या डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस तकनीक में दो तरीकों से धान की बुआई होती है। पहले तरीके में बुवाई के लिए देसी हल और दूसरे में मशीन से रोपाई की जा सकती है। वैज्ञानिकों के मुताबिक फसल के अवशेषों को जलाने के बदले, अवशेषों को मिट्टी में मिलाने से धरती और उपजाऊ बनती है।
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