दीपिका व्यास, डॉ. सोनाली कर, डॉ. पद्माक्षी ठाकुर, चन्द्रपाल चेोकसे एवं नरोत्तम दास काठले
श.गु.कृ.महा. एवं अनुसंधान केन्द्र, (इं.गां.कृ.वि.वि.) जगदलपुर

वैज्ञानिक नामः- सोलेनम टूबरोसम
कुलः- सोलेनेसी
उत्पति स्थानः- साउथ अमेरिका

आलू भारत की प्रमुख फसल है भारत में चावल और गेंहू के बाद सबसे ज्यादा उत्पादन आलू का ही किया जाता है। भारत के कई हिस्सों में वर्ष भर आलू की खेती की जाती है। आलू की खेती पुरे देश में की जाती है, केवल तमिलनाडु और केरल के आलावा। हमारे देश में आलू की औसत उपज 153 क्विन्टल प्रति हेक्टेर के हिसाब से होता है, जो की अन्य देशो की तुलना में बहुत कम है। आलू की अच्छी पैदावार के लिए हमे अच्छे किस्मों के रोग रहित बीजो का चयन करना बहुत आवश्यक है। इसके अलावा उर्वरकों का प्रयोग, सिंचाई की उपलब्धता और रोग नियंत्रण के उपाय से भी आलू की उपज पर इसका प्रभाव पड़ता है ।

आलू के बीजो के प्रकार एवं चयन के सही तरीके
फसल लगाने के लिए किसान भाइयो को ज्यादा लाभ के लिए हमें 3 से 3-5 से. मी. आकार वाले या 30 से 40 ग्राम वजन के आलुओं को बीज के रूप में चयन करना चाहिए। क्योंकि आलू के बीज का आकार का प्रभाव फसल के उत्पादन पर भी पड़ता है। यदि बड़े आकार वाले बीजो का चयन किया जाये तो पैदावार तो ज्यादा होगी लेकिन इससे बीज की लागत ज्यादा हो जाती है और बीज की कीमत ज्यादा होने पर प्रायः मुनाफा नहीं हो पाता। वही कम आकार वाले बीजो का चयन करने पर बीज में लगने वाला लागत तो कम होगा लेकिन इससे रोगाणुयुक्त आलू पैदा होने का खतरा बना रहता है। आमतौर पर देखा गया है की कम आकार वाले बीजो के फसल में ज्यादा रोग लगता है ।

आलू लगाने से पहले किस प्रकार से बीजोपचार करना चाहिए
दीमक, ओगरा, फंफूद एवं जमीन ,जनित बीमारी से बचने के लिए बीज उपचारित करना सही माना जाता है, इससे खेत में आलू की सड़न रुक जाता है और कंद की अंकुरण क्षमता बढ़ जाता है।

रासायनिक बीजोपचार
शीतगृह से निकालने के बाद आलू के बीजो को फफूंद एवं बैक्टिरिया जनित रोगों से बचने के लिए के लिए फफूंदनाशक दवाओं का प्रयोग करना चाहि,। इसके लिए लिए तेल वाला ड्राम, बाल्टी, या प्लास्टिक का बर्तन काम में ले सकते है, इसमें प्रति लीटर पानी में 1 ग्राम इमीडेक्लोप्रिड का घोल बना क र आलू के बीज को 10-15 मिनट तक डुबाकर रखे, फिर आलू को घोल से निकाल कर त्रिपाल या खल्ली बोरा पर छायादार स्थान में फैला दें, ताकि आलू की बीज की नमी कम हो जायें। ज्यादा उपज प्राप्त करने के लिए 1ः यूरिया और 1ः सोडियम बाई कार्बोनेट के घोल में 5-10 मिनट तक डुबोकर भी बीज उपचार कर सकते है।

बीजोपचार का देशी तरीका
देशी गाय के गोमूत्र में बीज को उपचारित करने के 2 से 3 घंटे सूखने के बाद बीज को बुवाई करना चाहि,, या फिर 15 ग्राम हींग को बारीक पीसकर 5 लीटर देशी गाय के मट्ठा में मिलाकर बीज को उपचारित करे, और 1 घंटे सूखने के बाद बीज की बुवाई करे।

आलू की बुवाई-

1. जमीन से 15-20 से.मी. ऊँची मेड़ें बना ले जिसकी दूरी 45-60 से.मी.होनी चाहिए, उसके बाद दोनों तरफ या बिच में 15-20 से.मी. दुरी पर और आलू 7-8 से.मी. गहराई पर खुरपी की सहायता से लगा दे।

2. आलू के खेत में उथली नालिया बनाकर जिसकी गहराई 5-7 से.मी. हो, उनमे 20-20 से.मी. दुरी पर आलू बीज रखकर दो कतारों के बिच हल चलाकर आलू को दबा देते हैं या फिर नालियॉ बनाए बिना ही आलू को 5-7 से.मी. गहरा बोकर मेड बना देते हैं।

*पहाड़ी क्षेत्रों में आलू की बुवाई 4 मीटर चौड़ी छोटी क्यारियों में लाइने जिसकी दुरी 45-60 से.मी. बनाकर करनी चाहिए, और ढलान 8-10% से ज्यादा नहीं होना चाहिए। लाइनों में आलू बीज को रखकर मिट्टी में दबा देना चाहिए, और उन पर फावड़े की मदद से लगभग 3-4 इंच या 8-10 से.मी मिट्टी चढ़ा देना चाहिए।

*आलू के पौधों की दुरी कम रखने पर पौधों को रौशनी ,पानी और पोषक तत्वों के लिए पर्याप्त जगह नहीं मिलती जिसके कारण छोटे आकर के आलू पैदा होते है, और अधिक दुरी रखने पर पौधों की संख्या कम हो जाती है जिससे आलू का वजन तो बड़ जाता है, लेकिन प्रति एकड़ के हिसाब से उत्पादन कम हो जाती है, इसलिए पौधों और कतारों की दुरी ऐसी होनी चाहिए जिससे न तो उपज में कमी हो और न ही आलू के वजन में कमी हो, औसतन बीज के लिए कतरो की दुरी 50 से. मी. और पौधों की दुरी 20-25 से. मी.का अन्तराल होना चाहिए।

आलू की बीजो में खाद एवं उर्वरक का प्रयोग
आलू की फसल में खाद की आवश्कता अधिक होती है, इसके लिए पर्याप्त मात्रा में रासायनिक और जैविक उर्वरक की आवश्कता होती है।

आलू के खेत में गोबर की खाद 200 क्विंटल और 5 क्विंटल खल्ली प्रति हैक्टेयर के हिसाब से डाला जाता है। साथ ही 150 किलो नेत्रजन, 330 किलो यूरिया के रूप में प्रति हैक्टेयर की दर से डाला जाता है, यूरिया की आधी मात्रा 165 किलो रोपणी के समय और बाकी 165 किलो रोपणी के एक महीने बाद मिट्टी चढ़ाने के समय डाला जाता है। 90 किलो स्फुर और 100 किलो पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से डाला जाता है।



आलू में कीट और रोग प्रबंधन
आलू की फसल पर कीटों एवं बीमारियों की समस्या से निवारण के लिए समेकित कार्यक्रम आर्थिक दृष्टि से किसानों के लिए काफी उपयुक्त तथा सरल है । अतः इनके समेकित प्रबंधन हेतु क्रमशः उन्नत कृषिगत क्रियाएँ, यांत्रिक क्रियायें, जैव नियंत्रण क्रियाएँ एवं रासायनिक क्रियाएँ अपनायी जाय।

1. कृषिगत क्रियायेंः-
  • गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें। ऐसा करने पर मिट्टी के भीतर कीट के विभिन्न अवस्थायें जैसे अण्डे, पिल्लू इत्यादि, रोगकारक व सूत्रकृमि के जीवाणु बाहर आ जायेंगे जो सूर्य की तेज धूप पड़ने पर नष्ट हो जाएगें अथवा परभक्षी उन्हें खाकर नष्ट कर देंगे ।
  • खेत की मेड़ों तथा पानी की नालियों आदि के आस-पास खरपतवारों को न उगने दें ।
  • खेत में सालेराइजैशन (पालीथीन की सफेद पारदर्शी चादर 10-15 दिनों तक ढक कर) क्रिया से खरपतवारों तथा मिट्टी जनित रोगों, कीटों की सुसुप्त अवस्थायें एवं सूत्रकृमियों आदि का नियंत्रण हो जाएगा ।
  • बीजों को बोने से पूर्व जीवाणु खाद (पी०एस०वी० या एजीटोबैक्टर (2 कि०ग्रा०/हे०) द्वारा भूमि को उपचारित कर लेना चाहिए जिससे फसलों की पैदावार में वृद्धि होती है तथा भूमि में विद्यमान हानिकारक फफूँद आदि की नष्ट करने में सहायता मिलती हैं ।
  • समय पर बुआई, उचित दूरी, स्वस्थ बीज, खरपतवार निकालना तथा अन्य सस्य क्रियाओं पर ध्यान देना चाहिए ।
  • नत्रजन फॉस्फोरस एवं पोटाश की अनुशंसित मात्रा का प्रयोग करना चाहिए ।
  • चूहे के बिलों को नष्ट करें। इसके लिए खेत की मेड़ों पर उग आई घास-पात की सफाई करें ।

बीज उपचार
यदि नये बीज का प्रयोग किया जा रहा हो तो बीज को जिबरैलिक एसिड नामक रसायन से संशोधित करके अंकुरित बीज का प्रयोग करना चाहिए ।

  • बीज कन्द मिट्टी से बाहर न रहे । इसके लिए मेंड़े ऊँची-ऊँची बनायें ताकि बीज कन्द मिट्टी से पूरी तरह ढक जाय। प्रत्येक वर्ष के बाद यह ध्यान देना चाहिए कि खुले हुए आलू कन्दीं को मिट्टी से ढक दिए जाए। यदि आकाश में बादल दिखाई दें, तो सिंचाई नहीं करना चाहिए।
  • खेत में अनावश्यक पानी निकालने की सुविधा होनी चाहिए।
  • प्रकाश प्रपंच लगाकर माहू एवं जैसिड के वयस्क कीटों की नष्ट कर देना चाहिए जिससे वे पत्तियों में अण्डा न दे पाये।
  • विभिन्न रोगों की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करना चाहिए।

जो इस प्रकार हैः-
  • पिछेती झूलसा प्रतिरोधी किस्में:- कुफरी बादशाह, कुफरी ज्योति, कुफरी सतलज, कुफरी आनन्द, कुफरी गिरिराज, कुफरी मेघा, कुफरी कंचन, कुफरी थनामलाई ।
  • सूत्रकृमि प्रतिरोध किस्मेंः- कुफरी स्वर्ण एवं कुफरी थनामलाई ।
  • मस्सा रोग प्रतिरोधक किस्मेंः- कुफरी ज्योति और कुफरी कंचन।
  • आलू की बुआई व खुदाई के समय को इस तरह समायोजित करें ताकि कीटों और रोंगों का प्रभाव कम पड़े। तना विगलन, फ्यूजोरियम विल्ट, माहु, जैसिड तथा कटवर्म जैसे रोगों व कीटों से बचाव हेतु जल्दी खुदाई करें ।
  • मिट्टी एवं कन्द जनित रोगों पर नियंत्रण पाने के लिए नॉन सोलेनेसियस फसलें (बिना आलू परिवार) उगाकर फसल-चक्र अपनाएं।
  • आलू के कन्द को मिट्टी से बाहर निकालने के एक सप्ताह पहले सिंचाई बन्द कर देना चाहिए। जिससे मिट्टी शुष्क हो जाय।
  • तना काटने के 10-15 दिन के उपरान्त फसल की खुदाई करना चाहिए।
  • खुदाई के समय रोगग्रस्त कन्दों को छांटकर उन्हें गढ्ढे में दबा देना चाहिए।
  • रोग मुक्त बीजों को भण्डारण से पूर्व बोरिक ऐसिड (3 प्रतिशत) से उपचारित कर भण्डारण करना चाहिए ।
  • रोग तथा कीट रहित आलू कन्दों को गृह भण्डार में रखने से पूर्व सूखी नीम की पत्तियों के पाउडर या पत्तियों को भण्डार के तहों में नीचे-ऊपर से बिछाकर आलू का भण्डारण करना चाहिए ।
  • सेक्सफेरोमोन्स तथा चिपकने वाले ट्रैप लगाकर कीटों के नर पतंगों को एकत्रित करके नष्ट कर देना चाहिए ।

2. यांत्रिक क्रियायेंः-
  • सफेद गिडार एवं कटुआ कीट के पिल्लूओं को एकत्रित करके नष्ट कर दें ।
  • भण्डारगृह में रखे बीज कन्द से आगामी फसल को क्षति न हो इसके लिए पिछेती झुलसा से ग्रसित कन्दों तथा सफेद गिडार व कटवर्म के पिल्लूओं से बचाव करें । समय-समय पर रोग ग्रसित कन्दों की छंटाई करते रहें।

3. जैविक नियंत्रण क्रियायेंः-
हानिकारक कीटों के प्राकृतिक शत्रु कीटों का संरक्षण करके इनका प्रयोग करना चाहिए जैसे भृगों, ततैया, क्राइसोपाइडस, मकडे इत्यादि परभक्षियों तथा एपैन्टेलेस ब्रकोन आदि परजीवियाँ।

4. रासायनिक नियंत्रण क्रियायेंः-
कीट नियंत्रण के उपायः-
  • बुआई के समय सफैद गिडार, कटवर्म व अन्य भूमिगत कीटों तथा लाही के नियंत्रण के लिए फोरेट (10 जी) केलडान (4 जी) की 10 किलोग्राम या कार्बोफ्यूरान (3 जी) की 25 कि॰ ग्रा॰ प्रति हेक्टेयर की दर से मेड़ बनाते समय मिट्टी में अच्छी तरह मीला दें ।
  • फसल वृद्धि बढ़वार के समय पाद फूदका (लाही जैसिड) एवं ऐपीलकना बीट्ल के नियंत्रण के लिए फेनीट्रोथियान (50 ई० सी०) 1.5 मि०ली० लीटर पानी की दर से मेंड़ों पर छिड़काव करें ।
  • फसल वृद्धि बढवार के समय कटवर्म एवं सफेद गिडार के नियंत्रण हेतु क्लोरपायरीफोस (20 ई०सी०) 2 मि०ली० लीटर पानी की दर से घोल बनाकर भेड़ों पर छिड़काव करें ।
  • कन्द बनने की प्रारम्भिक अवस्था में सफेद गिडार व सूत्रकृमि के नियंत्रण हेतु 10 कि०ग्रा० फोरेट (10 जी०) या 25 कि०ग्रा० कार्बोफ्यूरान (3 जी) का प्रयोग मेंड़ों की मिट्टी में करें ।

रोग नियंत्रण के उपायः-
  • अगेती झुलसा का नियंत्रण हेतु मेंकोंजेब (75 डब्लू० पी०) या डायथन जेड- 78 की 25 ग्राम प्रति लीटर पानी की मात्रा जबकि (लीफ स्पॉट) पत्ती पर काले धब्बे पड़ने वाले रोग का नियंत्रण करने के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (50 डब्लू० पी०) की 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की मात्रा या क्लासेथैलानिल (50 डब्लू० पी०) की 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की मात्रा का प्रयोग करें ।
  • पिछेती झूलसा रोग आगमन से पूर्व संरक्षी प्रोटेक्टेन फफूँदनाशक जैसे कॉपर ऑक्सीक्लोराइड मेंकीजेब क्लोरोथेलोनिल प्रोपीनेव आदि का छिड़काव प्रभावी होता है ।
  • पिछेती झुलसा रोग हो जाने या मौसम, पिछेती झुलसा रोग फैलने के अनुकूल अर्थात् आकाश बादलों से घिरा ही तथा रूक-रूक कर वर्षा ही रही हो तो मैटालैक्सिल 8 प्रतिशतए़ मेंकौंजब 64 प्रतिशत की 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव करना चाहिए। यदि मौसम अनुकूल हो तो प्रत्येक 7-10 दिनों के अन्तराल पर मेंकोजब या प्रोपीनेव (2.5 ग्रा0 प्रति लीटर पानी) का छिडकाव करें ।
  • मुरझान (काला गलन) का प्रति वर्ष प्रकोप होने पर इनके नियंत्रण हेतु प्रति हेक्टेयर 12 किलोग्राम की दर से ब्लीचिंग पाउडर आलू की बुआई के समय प्रयोग करना चाहिए ।

चूहा नियंत्रण के उपायः-
खेत में या खेत के मेढ़ी में चूहे का बिल या सुरंग दिखाई दे तो प्रत्येक बिल में सेलफास की गोली डाल कर बिल का अच्छी तरह से बंद कर दें अथवा जिंक फास्फाइड को गेहूँ के आटा या सत्तू में मिलाकर (1रू10) बिल में प्रयोग करें।

इस प्रकार आलू उत्पादक समय रहते उपयुक्त पौध संरक्षण प्रणाली अपनाएं तो आलू की फसल की बर्वाद होने से बचा सकते हैं। शोधपूरक सफलता बताती है कि आलू की फसल को समेकित कीट एवं रोग प्रबंधन प्रणाली अपनाकर बचाया जा सकता है तथा गुणवत्तायुक्त अधिक फसल उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है ।