दीपिका व्यास, डॉ. सोनाली कर, डॉ. पद्माक्षी ठाकुर
चन्द्रपाल चेोेेेेकसे एवं उपेन्द्र कुमार नायक
श.गु.कृ.महा. एवं अनुसंधान केन्द्र, (इं.गां.कृ.वि.वि.) जगदलपुर

वैज्ञानिक नामः कप्सीकम एनम, 
कुलः सोलेनेसी, 
उत्पति स्थानः मैक्सिको

परिचय
मिर्च सोलेनेसी कुल की एक महत्वपूर्ण फसलों मे से एक है। यह फसल बड़े पैमाने पर पूरे भारत में अपने फलो के लिए उगाई जाती है। इसका उपयोग सब्जियों, मसालों , चिली सॉस, और अचार के लिए भी किया जाता है। साथ ही साथ सूखी मिर्च व सुखी पावडर के लिए किया जाता है। मिर्च में उपस्थित लाल रंग ‘‘ कैप्सेंथिन‘‘ घटक के कारण होता है। और मिर्च में तिखापन मिर्च में उपस्थित सक्रिय घटक ‘‘कैप्सिसिन‘‘ के कारण होता है।

छत्तीसगढ़ में मिर्च की खेती
छत्तीसगढ़ में मिर्च की खेती बड़े पैमाने में की जा रही है। वर्ष 2019 में एक हजार हेक्टेयर में मिर्च की खेती हुई थी। इस साल मिर्च के रकबे में 250 से 300 हेक्टेयर की वृद्धि संभावित है। छत्तीसगढ़ के राजधानी से करीब 250 कि.मी. दूर कोण्डागांव के किसान बड़े पैमाने पर हरी मिर्च की खेती कर रहे है। इसके अलावा राजनादगांव, दुर्ग, बेमेतरा जिलों में भी बहुतायत से खेती हो रही है। 2019-20 में छत्तीसगढ़ में मिर्ची की क्षेत्रफल 35912 हेक्टेयर तथा उत्पादन 246438 एवं 6.86 उत्पादकता देखी गयी है।

जलवायु
मिर्च उष्णकटिबंधीय और उप-उष्ठकठिबंधीय क्षेत्र की फसल होती है। यह गर्म और आर्द्र जलवायु दोनों प्रकार के तापमान के लिए 20-25 डिग्री अंश तापमान उपयुक्त होता है। अत्यधिक वर्षा मिर्ची की फसलों के लिए हानिकारक होता है। बारिश की फसल के लिए 25-30 इंच की वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र में उगाया जा सकता है।

मृदा
मिर्च को विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाई जा सकती है लेकिन मुख्य रूप से रेतीले दोमट मिट्टी को उपयुक्त और इसमें अच्छे से उगाई जा सकती है। वर्षा आधारित फसल के लिए काली मिट्टी जो लम्बे समय तक नमी बनाये रखते है उपयुक्त होता है।

भूमि की तैयारी
पौधा लगाने से पहले भूमि को अच्छी तरह से भूरभूरी बना लेना चाहिए। मिर्च की खेती के लिए अम्लीय मृदा उपयुक्त नही है। भूमि को 2-3 बार अच्छी से जुताई करके मृदा को भूरभूरी बना लेना चाहिए फिर कम से कम बुआई के 15-20 दिन पहले थ्ल्ड (गोबर की खाद) 150-200 क्विंटल मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए।

भूमि चयन
मिर्च को अच्छे जल निकास वाली भूमि का चयन करना चाहिये। प्रायः इसके खेती सभी प्रकार की भूमि में पैदा की जा सकती है, परन्तु जीवांरा युक्त दोमट या बलुई मिट्टी जिसमें कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अधिक हो सबसे उपयुक्त होती है। लवण वाली भूमि इसके अंकुरण और प्रारंभिक विकास को प्रभावित करती है। मिर्च के लिए मिट्टी का पी.एच.मान 6.5 से 7.5 सर्वोत्तम है।

उन्नत शील किस्में
मिर्च की उन्नत फसल के लिए सामान्य एवं संकर किस्मों की क्षमता के अनुसार उत्पादन ले पाना तथा संभव है। जब उसके लिए उचित प्रबंधन एवं अनुकूल जल व मिट्टी एवं उस क्षेत्र की प्रचलित किस्म उपलब्ध हो।

मसाले वाली किस्में
पुसा ज्वाला, अर्का अनमोल, वी.एन.आर. सुनिधि, जापानी लॉग, आन्ध्रा ज्योति, पंजाब लाल, अर्का लोहिन, जवाहर मिर्च 148।

अचार वाली किस्म
अर्का मोहिनी, अर्का गौरव, तेजस्विनी, पुसा सदाबहार, अर्का बसंत, चायनीज जायंत, हाइब्रिड भारत, अर्का हरित।

बीज दर
मिर्च की सामान्य किस्मों की 1 से 1.5 कि.ग्रा. तथा संकर किस्मों की 250 से 350 ग्राम बीज दर की मात्रा एक हेक्टेयर क्षेत्र की नर्सरी के लिए पर्याप्त होता है।

नर्सरी एवं रोपाई समय
मिर्च की रोपाई वर्षा ऋतु, शरद ऋतु, ग्रीष्म तीनों मौसम में किया जाता है। परन्तु मिर्च की मुख्य फसल खरीफ ऋतु में जून से अक्टूबर तक तैयार किया जाता है। जिनकी रोपाई जून-जुलाई में शरद ऋतु में एवं फसल सितम्बर-अक्टूबर और ग्रीष्मकालीन फसल की रोपाई फरवरी से मार्च में की किया जाता है। रोपाई के लिए पौध 25-30 दिनों से अधिक पुरानी नही होनी चाहिए अर्थात नर्सरी में बीच की बुआई मुख्य खेत में रोपाई के 4-5 सप्ताह पहले करें।

नर्सरी की तैयारी
मिर्च की पौध तैयार करने का समय ध्यान देने वाली महत्वपूर्ण बातेः-

1. मिर्च पौधशाला तैयारी समय 40-50 कि.ग्रा. वर्मीकम्पोस्ट या पूर्णता सड़ी हुई गोबर खाद 50 ग्राम फोरेट दवा प्रति क्यारी की मिट्टी में मिलायें।

2. मिर्च पौध तैयार करने के लिए बीजों की बुआई 3ग1 मीटर आकार की भूमि से 15 से.मी. ऊँची क्यारियों तैयार करें।

3. बुआई के 1 दिन पूर्व कार्बेन्डाजिम दवा 1.5 ग्रा/ली. पानी की दर से उपचारित क्यारी में तैयार करें। घरेलू बीज इस्तेमाल करते समय हमेशा बीज को थायरम 2.5 ग्रा./कि.ग्रा. बीज दर से उपचारित करें।

4. अगले दिन क्यारी में 5 से.मी. दूरी पर 0.5 से 1 से.मी. गहराई पर बीजों की बुआई करें।

5. बीज बोनें के बाद गोबर खाद मिट्टी व बालू (1ः1ः1) के कण से ढकने के बाद क्यारिया को धान की पुआल, सुखी घांस एवं सुखी पत्तियों से ढक दिया जाता है।

6. अंकुरण के 10 दिन बाद कापर आक्सीक्लोराइड 2 ग्राम दवा/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

सिंचाई प्रबंधन
मिर्च की फसल को मिट्टी की किस्म, भूमि के प्रकार व वर्षा के आधार पर सिंचाई कर सकते है। यदि वर्षा कम हो रही है तो 10 -15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए। यदि दोमट मिट्टी हो तो 10 से 12 दिन के अंतराल पर और ढाल भूमि पर 10 दिन के अंतराल में सिंचाई करना चाहिए। मिर्च की फसल में फूल व फल बनते समय सिंचाई करना अत्यन्त आवश्यक होता है। इस स्थिति में सिंचाई न करने पर मिर्च के फल व फूल छोटी अवस्था में गिर जाते है। इसके साथ ही मिर्च की फसल में जल निकास की उचित प्रबंध करना अनिवार्य होता है।

पोषक तत्व प्रबंधन
उर्वरको की उपयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर करना लाभदायक होता है। सामान्यत एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में 25-30 टन गोबर की पूर्णतः सड़ी हुई खाद या 5-6 टन वर्मीकम्पोस्ट खेत की तैयारी के समय मिलायें।

N = 120 से 150 कि.ग्रा.

P = 60 कि.ग्रा.

K = 80 कि.ग्रा.

खरपतवार प्रबंधन
सामान्य मिर्च की पहली निंदाई पौध लगाने की 20 से 25 दिनों में और दूसरी निंदाई 35 से 40 दिनों पश्चात् करें। यदि खरपतवार नाशी से नियंत्रित करना चाहते है तो 300 ग्राम आक्सीफ्ल्यूओरफेन मात्रा का पौध रोपण से ठीक पहले छिड़काव 600 से 700 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

पादप नियामक (हार्मोन) का प्रयोग
फूल आते समय 0.25 ml NAA प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करने से पुष्पो के झड़ने में कमी आती है और उत्पादन में लगभग 15-20 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। 400 PPM प्रति लीटर पानी में इथरेल का घोल बनाकर छिड़काव करने से ग्रीष्म व शीतकालीन फसलों की उत्पादन बढ़ता है।

प्रमुख कीट एवं रोकथाम

1. सफेद मक्खी: यह मिर्च के पत्तियों और कोमल भाग से रस चुसकर फसलों को नुकसान पहुँचाता है। जिससे पौधों में लीफकर्ल नामक रोग हो जाता है।


रोकथाम: सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए यलो स्ट्रीकी ट्रेफ जिसमें ग्रीस लगा हुआ हो का उपयोग किया जाता है। ट्राईएलोफास 2.5 मि.ली/लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जाता है। एंव छैज्ञम् 4 ग्राम./लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जाता हैे।

2. थ्रिप्स: इस कीट के निम्न एवं व्यस्क पौधों के पत्तियों एवं सुट से रस को चुसना है जिससे पत्तियों में ऊपर की ओर कर्लिग आ जाती है।

रोकथाम: इस कीट की रोकथाम के लिए 5 ग्राम. प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित किया जाता है। तथा डाइकोपाल 5 मि.ली/लीटर वेटेबल सल्फर 3 ग्राम/लीटर एवं डाइफेनथियरॉन 1 ग्राम/लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जाता है।

प्रमुख रोग एवं रोकथाम:
1. आर्दगलन (डेम्पिग आफ): रोग प्रकोप पौधें की छोटी अवस्था में होता है। जमीन की सतह पर स्थित तने का भाग काला कमजोर हो जाता है और पौधें गिरकर मर जाते है।


रोकथाम: बीज को बुआई से पूर्व थाइरम या केपटान 3 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करने से आर्दगलन की समस्या से निदान मिलती है। नर्सरी को आसपास की भूमि सतह से 4-6 इंच ऊचाई पर तैयार करें।

2. श्याम वर्ण (एन्थ्रोक्नोज): पत्तियों पर छोटे-छोटे जलीय धब्बे बनते है तथा बाद में गहरे भूरे रंग के उठे हुए दिखाई देते है। अंत में रोगग्रस्त पत्तियां पीली पड़कर झड़ जाती है।


रोकथामः मेन्कोजेब या जाइनेब 2 ग्रा./लीटर पानी में घोल के 2-3 बार छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करें।

फल तुड़ाई:

1. हरी मिर्च रोपाई के लगभग 85-91 दिन बाद प्रथम तुड़ाई किया जाता है। इस तरह एक से दो सप्ताह के अंतर पर परिपक्व फलों की तुड़ाई करें। इस प्रकार 8-10 तुड़ाई की जाती है।

2. सुखी मिर्च के लिए फलों को 140-150 दिन बाद जब मिर्च का रंग लाल हो जाता है तब तोड़ा जाता हैै। परिपक्व फलों को 8-10 दिनों तक धूप में सुखायें।

3. पके फलों को 8-10 दिन तक धूप में सुखाया जाता है। आधा सुख जाने पर फलों की सायकाल के समय एक दरी में इकटठा करके दबा दिया जाता है। जिससे की मिर्च चपटी हो जायें तथा सुखने में आसानी रहती है। बड़े पैमाने पर मिर्ची को 53 से 54 डिग्री अंश तापमान पर 2-3 दिन तक सुखाया जाता है।

उपज: सामान्य किस्मों की औसतन उपज 125-250 क्विंटल और संकर किस्मों से 250-400 क्विंटल/हेक्टेयर तक उपज प्राप्त होती है।