डॉ. इन्द्रपाल सिंह
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, छुईखदान (छ.ग.)

सूरजमुखी की खेती हमारे देश में तीनों मौसम में की जा सकती हैं। सूरजमुखी की फसल प्रकाश एवं तापमान के प्रति संवेदनशील होने के कारण सिंचित क्षेत्रों में रबी, पछेती रबी एवं जायद की फसल के रूप में इसकी खेती अधिक प्रचलित हो रही हैं, सिंचित क्षेत्र में वर्षाकालीन धान के बाद सूरजमुखी की खेती का विकास तेजी से हो रहा हैं। सूरजमुखी एक सह फसल के रूप में, मूंग तथा कपास फसल के साथ भली भांति उगाया जा सकता हैं। देश में जहां कम उपज देने वाली दालें जैसे बटरा, बटरी, तिवड़ा, मोठ, कुल्थी उगाई जाती हैं वहां सूरजमुखी उगाकर अधिक लाभ लिया जा सकता हैं। सूरजमुखी के बीज में 45-48 प्रतिशत् तेल पाया जाता हैं एवं इसके तेल का सेवन विशेषकर उच्च रक्त चाप हृदय रोगियों के लिए स्वास्थवर्धक माना गया हैं।

भूमि का चुनाव एवं खेत की तैयारी
हल्की से भारी मिट्टी जिसमें पानी का निकास अच्छा हो वह खरीफ बुवाई की फसल के लिये उपयुक्त हैं। दोमट, काली व चिकनी भूमि में सिंचित, अर्धसिंचित रबी और गर्मी की फसल सफलतापूर्वक ली जा सकती हैं। खेत की एक या दो बार गहरी जुताई कर एक हल्की जुताई करें, साथ ही अच्छी तरह से नींदा नष्ट कर लें और मिट्टी को भुरभुरा बना लें।

उन्नत किस्में
टी.एन.ए.यु.-एस.यू.एफ.-7, मार्डन, बी.एस.एच.-1, डी.आर.एस.एच.-1, सूर्या, के.बी.एस.एच.-44, के.बी.एस.एच.-1, डी.आर.एस.एच.-113, ज्वालामुखी, डी.आर.एस.एच.-108, डी.आर.एस.एच.-133

बीज व बीज का चुनाव
सूरजमुखी की दो प्रकार की किस्मों का बीज बाजार में उपलब्ध हैं।

1. साधारण किस्में
साधारण किस्मों का बीज किसानों को हर साल बदलने की आवश्यकता नहीं पड़ती पर इन किस्मों का बीज तीन साल बाद बदलना पड़ता हैं। शीघ्र पकने वाली (80-90 दिनों) साधारण किस्में मार्डन एवं एस.-56, सूर्या सी.ओ.-2 का चयन करना उपयुक्त होगा।

2. संकर किस्में
संकर किस्मों का चयन प्रदेश के विभिन्न्ा कृषि अंचलों की जलवायु के अनुरूप करना चाहिए। संकर किस्में विशेषकर एम.एस.एफ.-1,8,17, के.बी.एस.-1 एवं ज्वालामुखी का चयन करना उपयुक्त होगा। अधिक देर से पकने वाली किस्में प्रदेश की जलवायु के लिये उपयुक्त नहीं होती हैं।

बुवाई का समय

1. सिंचित क्षेत्रों से खरीफ फसल की कटाई के बाद अक्टूबर माह के मध्य से दिसंबर माह के मध्य तक रबी की बुवाई पूरी कर लेना चाहिये।

2. अक्टूबर माह की बुवाई में अंकुरण जल्दी और अच्छा होता हैं। देर से बुवाई करने में अंकुरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हैं।

3. असिंचित क्षेत्रों, वर्षा पर निर्भर खेती पर सूरजमुखी की बुवाई वर्षा समाप्त होते ही सितम्बर प्रथम सप्ताह से आखिरी सप्ताह तक बुवाई पूरी कर देना चाहिये।

4. गर्मी में यदि सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो, उस स्थिति में बुवाई जनवरी के दूसरे सप्ताह से फरवरी के प्रथम सप्ताह तक अवश्य कर लेनी चाहिए। बुवाई का समय इस तरह से निश्चित करना चाहिये जिससे की फसल में फूल खिलने, बीज भरने की अवस्था पर मौसम स्वच्छ साफ रहना चाहिए।

बीज की मात्रा
उन्नत किस्मों के बीज की मात्रा 10 किलो ग्राम/हे., संकर किस्मों का बीज 5-6 कि.ग्रा./हे.की आवश्यकता पड़ती हैं।

बीज उपचार
बीज जनित रोगों की रोकथाम के लिये 2 ग्राम थायरम एवं 1 ग्राम बाविस्टिन के मिश्रण को प्रति किलों बीज की दर से अथवा 3 ग्रा./किलो बीज की दर से थायरम से उपचारित करना चाहिए। डाऊनी मिल्डयू बीमारी के नियंत्रण के लिये रीडोमिल 3 ग्राम/किलो बीज की दर से अवश्य उपचारित करें।

बुवाई का तरीका
बुवाई कतारों में सीडड्रिल की सहायता से करें। रबी सिंचित सूरजमुखी एवं ग्रीष्म सिंचित सूरजमुखी हेतु कतार से कतार की दूरी 60 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 से.मी. रखें। खरीफ असिंचित हेतु यह दूरी 45×30 से.मी. रखें। बीज को 2-3 से.मी. से ज्यादा गहराई पर न डालें। सूरजमुखी में प्रति इकाई पौध संख्या एवं एक ही स्थान पर एक से अधिक पौध एक ही जगह पर हों, उखाड़ कर उनकी संख्या एक कर देनी चाहिए।

खाद एवं उर्वरकों की मात्रा
सूरजमुखी के विपुल उत्पादन के लिये कम्पोस्ट/गोबर की पकी हुई खाद 7-8 टन/हे. की दर से बुवाई के पूर्व खेत में डालें। रासायनिक खाद के प्रयोग के पूर्व मिट्टी परीक्षणोंपरांत आवश्यकतानुसार बुवाई केसमय 34-40 किलो नत्रजन, 60 किलो स्फुर एवं 30 किलो पोटाश की मात्रा खेत में डालें नत्रजन की शेष मात्रा 20-30 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के लगभग एक माह बाद पहली सिंचाई के बाद डालें।

सिंचाई एवं खरपतवार प्रबंधन
बुवाई से पहले आवश्यकतानुसार पलेवा करना चाहिए तथा रबी के मौसम से 3-4 एवं जायद की फसल में 5-6 सिंचाई करें। फूल खिलने एवं बीज भरते समय पानी देने से उपज में लाभ मिलता हैं। अधिक सिंचाई व भूमि में अधिक नमी होने से पौधों में जड़ गलन रोगों की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। अतः जरूरत के अनुसार ही पर्याप्त अंतर पर सिंचाई करना चाहिए।
    अधिक नींदा की समस्या होने पर बुवाई के बाद अंकुरण से पूर्व लासों (एलाक्लोर) 1.5 किलो (सक्रिय तत्व) प्रति हेक्टर की दर से उपयोग करने से नींदा नियंत्रण अच्छा होता हैं, तत्पश्चात् बुवाई से लगभग 25 से 30 दिन बाद फसल में कतारों के बीच हल चलाकर अथवा हस्त चलित द्वारा निंदाई करना चाहिए। आवश्यक होने पर 20-35 दिन बाद दूसरी निंदाई करना चाहिए।

कटाई, गहाई, भंडारण एवं पैदावार
फसल के पौधे पककर पीले रंग में बदलने लगते हैं तब फसल की कटाई कर सुखा लेना चाहिए। सूखे फलों को लाठी से पीट कर या दो फूलों को आपस में रगड़ कर गहाई की जा सकती हैं उडावनी विधि (सूपो से फटककर) से बीज को साफ कर धूप में सुखा लें सुरजमुखी की अच्छी फसल 12 से 15 क्विंटल/हे. या उससे भी अधिक उपज ली जा सकती हैं।

पौध संरक्षण

कीड़े
सूरजमुखी की फसल को कटुआ इल्ली, सफेद मक्खी, एफिड, जेसिड, तम्बाकू कीट, बिहार बाल इल्ली एवं चने की इल्ली से फसल की विभिन्न अवस्थाओं में क्षति पहुंचती हैं। सफेद मक्खी, एफिड, जेसिड की रोकथाम के लिये ऑक्सीडेमेटान 25 ई.सी. या क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. दवा की 750-1000 मि.ली. का छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए। कटुआ इल्ली, तम्बाकू कीट, बिहार बाल इल्ली एवं चने की इल्ली की रोकथाम के लिये क्विनालफॉस 25 ई.सी. 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। दवा का छिड़काव दोपहर बाद हवा की दिशा में करना चाहिए पुष्पावस्था में अति आवश्यक होने पर ही कीटनाशक दवा का उपयोग करना चाहिये, क्योंकि इसके उपयोग से परागण करने वाले लाभकारी कीटों को क्षति पहुंचती हैं तथा उपज में कमी हो सकती हैं।

बीमारियां
पत्ती में आने वाली गेरूआ, पत्ती झुलसन, जड़ तथा तना सड़न की बीमारियां प्रमुख हैं। जड़ तथा तना सड़न की रोकथाम हेतु बीजोपचार एवं गर्मी में खेत की गहरी जुताई कर पौध अवशेषों को एकत्र कर जलाना तथा रोगी पौधे के चारों तरफ थायरम 1 प्रतिशत् तथा कार्बेडाजिम 1 ग्राम/ली. पानी में घोलकर छिड़काव करें। प्रतिवर्ग मीटर भूमि हेतु 7 लीटर दवा के घोल के प्रयोग से अच्छे परिणाम मिलते हैं। साथ ही खेत में पानी के निकासी की अच्छी व्यवस्था करें। पत्ती रोग से रोकथाम के लिये डायथेन एम.-45, 25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी से उपचार करें। फूल सड़न की रोकथाम के लिये भी डायथेन एम.-45, 0.02 प्रतिशत् की दर से उपचार करने पर लाभ होता हैं।

विशेष
मधुमक्खियों से सूरजमुखी के परागण में अनुकूल प्रभाव होता हैं एवं उपज में वृद्धि होती हैं। इसलिये सूरजमुखी के साथ-साथ मधुमक्खी की काश्त करने पर शहद का वाणिज्यिक उत्पादन किया जा सकता हैं साथ ही फसल की उत्पादकता भी बढ़ती हैं। तोते के द्वारा पुष्पावधी के बाद सूरजमुखी के फसल को अत्याधिक क्षति पहुंचती हैं। इसलिये किसान भाई मिलकर अधिक से अधिक क्षेत्र में सूरजमुखी लगावे ताकि पक्षियों से होने वाली क्षति को कम किया जा सके। इन खेतों में पक्षियों से बचाव के लिये आवाज करनी चाहिए। इसके अलावा खेत के ऊपर अग्नि पकावर्तक फीते लगाने से भी पक्षियों के द्वारा किया गया नुकसान कम होता हैं। यह एक लाल चमकीला फीता होता हैं, जो सूर्य के प्रकाश में अत्याधिक चमक उत्पन्न करता हैं, जिससे पक्षियों को अग्नि की लपटों का आभास होता हैं।

सूरजमुखी के उत्पादन बढ़ाने में सहयोगी एवं सुलभ तकनीक

1. उत्तम किस्मों की बीज हाइब्रिड कार चयन करें।

2. बुवाई के पहले सूरजमुखी के बीज को 12 घंटे भिगाकर बाद में छाया में 12 घंटे सुखाकर बोने से अंकुरण तथा पैदावार में 10-12 प्रतिशत् बढ़ोत्तरी होती हैं (सीड डिहाइड्रिंग)।

3. बुवाई की योजना ऐसी करे कि सूरजमुखी की फूलती-फलती फसल अवस्था पर पानी बादल, पाला का प्रभाव न पड़ पायें।

4. फूल खिलने के समय फसल पर 0.02 प्रतिशत् बोरेक्स मिक्चर का छिड़काव करे जिससे माथा बड़ा अच्छा भरेगा।

5. सूरजमुखी की फूलती फसल पर कीट एवं रोगनाशक दवा का भुरकाव एवं छिड़काव को टालना चाहिए। अनिवार्य हो तो दवा का भुरकाव/छिड़काव शाम के समय ही करें।

6. सूरजमुखी का परागण मधुमक्खियों से होता हैं अतः इनकी संख्या में कमी न करें। इन मित्र कीटों की संख्या को पूरा करने के लिये कृत्रिम परागण की आवश्यकता होती हैं। इसके लिये फूलों को हाथ द्वारा मलमल के कपड़े या रूई से हल्का सा फेर कर परागण किया जाता हैं। इसे हस्तपरागण भी कहते हैं। यह कार्य फूल खिलने के बाद हर दूसरे दिन सुबह 8 से 11 बजे के बीच 15 से 20 दिनों तक सभी फूलों में करने से फूलों में बीजों का भराव अच्छा होता हैं।

7. हस्तपरागण फूल खिलने के बाद हर दूसरे दिन सुबह 8 से 11 बजे के बीच 15 से 20 दिनों तक सभी फूलों में करने से फूलों में बीजों का भराव अच्छा होता हैं।