सुरभि जैन, विषय वस्तु विशेषज्ञ
(कृषि मौसम विज्ञान विभाग), कृषि विज्ञान केंद्र राजनांदगांव (छ.ग.)
कृषि कार्ययोजना
- धान पकने के 15 दिन पहले खेत से पानी निकाल दें। धान की अगेती फसल में 80 प्रतिशत दाने पीले पड़कर कड़े हो जायें तब कटाई करें।
- धान कटाई के उपरान्त उसे भली-भांति सुखाकर मिंजाई करें। देर से बोई गई धान की फसलों में सतत् निगरानी रखें।
- रबी फसलों के लिए खेत की तैयारी करें। इस हेतु टैªक्टर चलित रोटावेटर अथवा कल्टीवेटर का प्रयोग कर खाली खेतों में उथली जुताई करें।
- शीतकालीन गोभीवर्गीय सब्जियों जैसे- फूलगोभी, पत्तागोभी व गाठगोभी की अगेती किस्मों का चयन कर नर्सरी डालें। टमाटर, बैंगन, मिर्च एवं शिमला मिर्च लगाने के तैयारी करें व थायरम 1 ग्राम प्रति किलो बीज की दर उपचारित करें।
- किसान भाई वृक्षों के तने पर बोर्डों पेस्ट लगायें, फल उद्यान में साफ सफाई करें एवं वृक्षों के चारों तरफ थाला बनाकर खाद एवं उर्वरक की निर्धारित मात्रा मिलायें।
- भूरा माहो प्रभावित क्षेत्रों में गोलाई में भूरे रंग के स्थान दिखते हैं, जिसके पौधे पूर्णतः सूख जाते हैं। इन्हें हापर बर्न कहते हैं। अधिक प्रकोप की अवस्था में यदि सिंचाई की व्यवस्था हो तो खेतों से पानी कुछ दिनों के लिये निकाल देना चाहिए एवं इससे माहो की संख्या में भारी कमी आती हैं। अधिक प्रकोप की अवस्था में इमीडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. का 125 मि.ली./हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें अथवा कार्बारिल 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का छिड़काव करें। छिड़काव पौधे के निचले हिस्से में केन्द्रित करें।
- धान की फसल में गर्दन झुलसा रोग आने की संभावना हैं, जिसकी रोकथाम हेतु टेबुकोनाजोल दवा (1.5 मि.ली./ली.) दोपहर तीन बजे के बाद करना चाहिए। पर्णच्छद विगलन (शीथ रॉट) आने की स्थिति में प्रोपिकोनाजोल दवा (1 मि.ली./ली.) का छिड़काव करें।
- दलहनी फसलों के बीजों को बुवाई पूर्व कवकनाशी थायरम या साफ सुपर (2.5 ग्राम/किलो बीज) से पहले उपचारित करना चाहिए। तत्पश्चात् राइजोबियम जीवाणु कल्चर (10 ग्राम) तथा उपलब्ध होने पर जैविक नियंत्रणकर्ता ट्राइकोडर्मा संरूप (6-10 ग्राम) प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बोना चाहिए।
- उद्यानिकी फसलों तथा अन्य फसलों की बुवाई से पूर्व दीमक प्रकोपित क्षेत्रों में भूमि का उपचार क्लोरपायरीफीस 1.5 प्रतिशत चूर्ण का 20-25 किलो/हे. की दर से मिट्टी में मिलावें।
- उद्यानिकी फसलों की नर्सरी तैयार करने हेतु पौधशाला की मिट्टी का उपचार केप्टान (3 ग्राम/ली.) या मेटालेक्जिल (2 ग्राम/ली.) द्वारा बीजों की बुवाई के पूर्व करना चाहिए।
- बीजों का उपचार मेटालेक्जिल (1.5 ग्राम/किलो बीज) फफूंदनाशक से कर बोना चाहिए।
- वर्षाकालीन मूंगफली की फसल की खुदाई करें एवं सब्जियों की तुड़ाई करें।
- तिवड़ा की उन्न्त प्रजातियां जैसें- प्रतीक, रतन, महातिवड़ा का उपयोग बुवाई हेतु करें।
- मटर की उन्न्त प्रजातियां जैसें- अंबिका, शुभ्रा, रचना का उपयोग करें।
- गन्ने की शीतकालीन फसल की बुवाई करें।
- प्रवर्धित पौधों में मूलवृंत से निकलने वाली शाखाओं की काट-छाँट करें।
- नवीन रोपित उद्यान में गैप फिलिंग करें।
- गुलाब में कुंतन कार्य करें एवं बोर्डो पेस्ट लगाएं।
- शरद ऋतु के मौसमी पुष्पों को क्यारियों में लगाएं।
- शल्क कन्दीय पौधों के कन्द सुरक्षित करें।
- सेब एवं कमरख का जैम तैयार करें।
- चने की समय पर बुवाई करके विल्ट बीमारी से बचाव करें।
- जिन कृषकों के पास केला एवं पपीता का पौध तैयार हैं उसे मुख्य खेत में लगायें।
पशुपालन कार्ययोजना
- पशुबाड़े, मुर्गीघर एवं तालाब पोखरों के आसपास उगे खरपतवार की सफाई करते रहे ताकि मक्खी, मच्छर पनपने न पायें पशुशाला में गोबर के कंडे का धुआं करते रहें।
- खुरपका मुंहपका बीमारी से बचाव हेतु दुधारू पशुओं में टीकाकरण करायें एवं 15 दिन बाद उसी पशुओं को पोकनी का भी टीका लगवायें।
- दुधारू पशुओं में थनैला रोग से बचाव हेतु दुध पूरी मात्रा में यथा शीघ्र निकाल दें। इस रोग की रोकथाम हेतु लाल दवा (पोटेशियम पर मैगनेट) पानी के साथ घोल बनाकर दूध निकालने के पहले एवं बाद में थनों को अच्छी प्रकार से धो लें।
- मुर्गियों को सामूहिक रूप से दवापान करायें।
- निकृष्ट साड़ों एवं बैल हेतु बछड़ों का बधियाकरण करें।
- रबी हेतु हरे चारे की फसलों की बुवाई करें।
- पशुओं को सन्तुलित आहार, जिसमें सभी पोषक तत्व प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइडेªट, खनिज लवण तथा विटामिन उचित मात्रा एवं अनुपात में देवें।
- घास पर ओस खत्म होने के बाद पशुओं को चराई के लिये छोड़ा जाना चाहिए।
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