ईश्वर साहू, प्रदीप कुमार साहू, प्रीति साहू, सरिता एवं हेमंत कुमार
राजमाता विजयाराजे सिंध्या कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर (म.प्र.) 474002
कृषि महाविद्यालय ग्वालियर (म.प्र.)
सामान्य नाम - गुलदाउदी
कुल - ऐस्टेरेसी
गुलदाउदी एक बहुमुखी फूल है। इसे क्यारियों एवं गमलों में उगाया जा सकता है। इसका उपयोग माला बनाने में एवं कर्तित फूलों के रूप में पुष्प सज्जा में किया जाता है। भारत में बडे फूलों के आकार वाली प्रजातियों का भीतरी सजावट के लिए कर्तिक फूलों के रूप में एवं प्रदर्शनी के लिए उगाया जाता है।
जलवायु
गुलदाउदी के वानस्पतिक वृद्धि के लिए लम्बे दिन एवं फूल खिलने के लिए छोटे दिन की आवश्यकता होती है। प्रकाश एवं तापमान पौधों में फूलों के खिलने एवं वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण वातावरणीय कारक है। वानस्पतिक वृद्धि की दर मुख्यतः तापमान द्वारा प्रभावित होती है। गुलदाउदी के लिए औसत तापमान 16- 25 सेल्सियस है। फूल का आकार एवं स्वरूप भी तापमान द्वारा प्रभावित होती है। पौधों के लिए 70-90 प्रतिशत आपेक्षिक आर्द्रता अनुकूल होती है। इसके साथ ही 9 घंटे प्रकाशमय एवं 13 घंटे अंधकारमय परिस्थिति की आवश्यकता होती है।
मृदा
गुलदाउदी की उत्तम खेती के लिए बलुई दोमट, उचित जल निकास, उचित बनावट एवं हवादार मृदा अनुकूल होती है। कार्बनिक तत्वों से युक्त भूमि एवं पीएच मान 6.5 गुलदाउदी के लिए उत्तम होता है। यह एक रेशेदार जड़ विन्यास वाला पौधा है जो कि खराब जल निकास से बहुत प्रभावित होता है।
प्रजातियां- अर्का स्वर्णा, बीरबल साहनी, शान्ति, वाई टू के, अर्का गंगा, सद्भावना, अप्पू, बिंदिया,को.1 एवं पंकज
भा.कृ.अ.सं. द्वारा उत्परिर्वतन तकनीक द्वारा विकसित किस्में- इस तकनीक द्वारा गुलदावदी की दो प्रजातियां पूसा अनमोल एवं पूसा सेन्टेनरी निकाली गयी है।
भूमि की तैयारी
क्यारियों में पौधे लगाने से पहले भूमि की 2-3 बार अच्छी प्रकार से जुताई की जाती है अखिल भारतीय समन्वय पुष्प अनुसंधान परियोजना द्वारा 5 कि.लो. ग्राम प्रति वर्ग मी गोबर की खाद का उपयोग उचित बताया गया है।
प्रवर्धन
गुलदाउदी का प्रवर्धन वानस्पतिक तरीके से जैसे सकर्स, कलम एवं ऊतक संवर्धन विधि द्वारा किया जाता है
सकर्स
कटिंग कर्तन
रोपाई का समय
अच्छे पौधों से टर्मिनल कटिंग्स को जून माह में तैयार किया जाता है और उन्हें जड़ निकलने के पश्चात् 15 से.मी. गहराई वाले गमले या तैयार क्यारियों में जुलाई माह के अन्त में रोपित किया जाता है। यह पौधे अगस्त माह के अन्त एवं सितम्बर के आरम्भ में पिचिंग के लिए तैयार हो जाते है।
रोपाई की दूरी 20 ग 20 से.मी. (पंक्ति से पंक्ति तथा पौधा से पौधा)
खाद एवं उर्वरक
खाद एवं उर्वरक का उपयोग करने से पहले फसल अच्छी होती है। 8-10 टन गोबर की खाद प्रति एकड़, 50 किलो ग्रा. नाइट्रोजन, 160 कि.ग्रा. फास्फोरस और 80 कि.ग्रा. पोटाष प्रति एकड़ की दर से मृदा में मिला देना चाहिए।
सिंचाई
सिंचाई की आवृति वृद्धि के स्तर, मृदा एवं मौसम की दषा पर निर्भर करती है। क्यारियों एवं गमलों में रोपित गुलदाउदी के लिए उचित व्यवस्था होनी चाहिए। गुलदाउदी के पौधे की उचित वृद्धि एवं विकास सिंचाई की मात्रा एवं आवृति पर निर्भर करती है। भारत में भूमि की सिंचाई के लिए नाली एवं गमलों के लिए बाल्टी का उपयोग करते है।
खरपतवार प्रबंधन
ग्रीनहाउस एवं खेतों में खरपतवार की अनदेखी नही किया जा सकता है। यह पौधों में नमी एवं पोषण की कमी कर देते है। फूलों की कटाई के पश्चात् भूमि की अच्छी प्रकार से गुड़ाई करके खरपतवार को जब वे छोटी होती है निकाल देना चाहिए। पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए 2-3 निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है प्रथम निराई-गुडाई रोपाई के एक माह बाद करनी चाहिए। खरपतवारों का नियंत्रण करने के लिए खरपतवारनाशी का भी प्रयोग कर सकते है।
पिन्चिंग
रोपाई के पश्चात् पौधे में मुख्यतः उपर की ओर वृद्धि होती है। जबकि शाखायंे कम मात्रा में होती है। पौधे की लम्बाई को रोकने के लिए एक साधारण प्रक्रिया उपयोग में लायी जाती है जिसे पिन्चिंग कहते है। केवल मुलायम वानस्पतिक 1.5-3.0 से.मी. लम्बे शीर्षस्थ तने को तोड़कर अलग कर देते है। गुलदाउदी की फसल में पिन्चिंग एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। छोटे फूलों के उत्पादन के लिए पिन्चिंग एक प्रमुख प्रक्रिया है। पिन्चिंग के द्वारा तने में फूलों की संख्या में वृद्धि की जा सकती है।
रोग व्याधियां एवं उपचार
जड़ सड़न (पिथियम जाति, फाइटोफथोरा जाति ) - इस रोग से प्रभावित पौधे की जड़, तना, पत्ती, अचानक सूख जाती है।
उपचार
1. उचित जल निकास का प्रबंध होना चाहिए।
2. थाइरम या कैप्टान या दोनों का मिश्रण 2.5 ग्राम/वर्ग मी. की दर से मृदा को उपचारित करना चाहिए जो संक्रमण को रोकने में सहायता करते है।
3. मेन्कोजेब मेटालेक्सील और फोस्टील का उपयोग भी संक्रमण के लिए कर सकते है।
लीफ स्पोट
उपचार
1. 15 दिन के अन्तराल पर मैन्कोजेब का छिड़काव रोग को नियंत्रित करने में सहायता करता है।
2. संक्रमित पत्तियों को जलाकर नष्ट कर देना चाहिए।
3. कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव (0.2 प्रतिशत) की दर से करना चाहिए।
बिल्ट
उपचार
1. ग्रीष्म ऋतु में मृदा को काली पाॅलीथीन से ढककर धूप में उपचारित करना चाहिए।
2. मृदा को डाइथेन एम 45 (0.2 प्रतिशत) से उपचारित करना चाहिए।
3. रोपाई से पहले कटिंग को बिनोमिल के घोल में डूबोकर उपचारित करना चाहिए।
4. प्रतिरोधी प्रजातियों का उपयोग करना चाहिए।
रस्ट
उपचार
1. उचित साफ-सफाई रोग के संक्रमण को नियंत्रित करते है।
2. प्रभावित पत्तियों को जल्दी ही तोड़ देना चाहिए।
3. सल्फर और अन्य फफूंदीनाशक जैसे जिनेब, कैप्टान आदि का पौधों पर बुरकाब करना चाहिए।
पाउडरी मिल्डयू (ओडियम क्राइसेन्थेमी )
उपचार - सल्फर कवकनाशी या कारबेन्डाजिम का उपयोग करना चाहिए।
विशाणु रोग
गुलदाउदी स्टंट
उपचार - वाइरस रहित कंटिग (कर्तन) का उपयोग/प्रयोग करना चाहिए।
प्रमुख कीट एवं सरंक्षण
1. एफिड (माइजस पर्सकी)
उपचार - मोनोक्रोटोफास (0.5 प्रतिशत) या मैलाथियान (0.1 प्रतिशत), या फास्फोमिडोन (0.02 प्रतिशत) 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करते रहना चाहिए।
2. माइटस
उपचार: डाइकोफाॅल (0.05 प्रतिशत), या वटीमैंक या पैण्टेक (0.05 प्रतिषत) 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिए।
4. थ्रिप्सः (थ्रिप्स टैबकी)
उपचार: डाईमिथियोएट (0.05 प्रतिशत) का छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर 2-3 बार करना चाहिए।
4. लीफ माइनर (फाइटोमाइजा राइजेन्सीज)
उपचार: प्रभावित पत्तियों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए। मोनोक्रोटोफाॅस (0.05 प्रतिशत), या ट्राइजोफाॅस (0.05 प्रतिशत) का छिड़काव करना चाहिए।
5. लीफ फोल्डर
उपचार: साइपर मैथ्रिन (0.02 प्रतिशत), या डीकैम थ्रीन (0.02 प्रतिशत), या क्यूनाॅलफाॅस (0.05 प्रतिशत) का छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए।
फूलों कटाई एवं भण्डारण
रोपाई के 3-4 माह पश्चात् गुलदाउदी की फसल में फूल आने प्रारम्भ हो जाते है जो कि गुलदाउदी की प्रजातियों पर निर्भर करते है। कर्तित फूलों हेतु तने को मृदा से 10 से.मी. उपर तक काट देते है। फूलों की उम्र को बढ़ जाने के लिए तने का एक तिहाई हिस्सा पानी में डूबो देते है। फूलों को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें प्लास्टिक की थैलियों में रखना चाहिए। फूलों की कटाई का समय प्रजाति, विपणन एवं उद्देश्य पर निर्भर करता है।
ग्रेडिंग पैकिंग एवं भण्डारण
फूलों का वर्गीकरण (ग्रेडिंग) तने की लम्बाई, फूल के रंग एवं फूल के व्यास पर निर्भर करता है। परिपक्व फूलों को पाॅलीथीन में लपेट कर 6-8 हफ्तों के लिए 5. सेल्सियस तापमान पर सूखे स्थान पर रख सकते है। शिथिल फूलों के विपणन के लिए बाॅस कर बनी टोकरियों या जूट के थैलों में पैक करना चाहिए। एक टोकरी की क्षमता 1-7 कि.ग्रा. जबकि जूट के थैलेे में 30 कि.ग्रा. शिथिल फूल रखे जा सकते है।
उपज
गुलदाउदी की उपज 9-10 टन शिथिल फूल प्रति एकड़ होती है।
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