कैलाश विशाल (पौध रोग विज्ञान विभाग) 
जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर 482004 (म.प्र.) 
अंजली पटेल एवं रोहित कुमार मिश्रा (सस्य विज्ञान विभाग), 
वेद प्रकाश (अनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग), इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर

“यह पद्धति हाल ही में उभरा है तथा अभी भी निरंतर विकसित हो रही है।”

जैविक पशुधन उत्पादन क्यों?

परम्परागत पशुपालन में -
  • दाने व चारे में कीटनाशकों का प्रयोग होता है।
  • दानों में एडिटिव्स के रुप में ग्रोथ हार्मोन और एंटीबायोटिक्स का उपयोग होता है, जो पर्यावरण प्रदूषण का कारण बनता है। 
  • रसायनों का प्रयोग पशु कल्याण व मानव स्वास्थ को प्रभावित करता है। 
“इनकों ध्यान में रखते हुए हमें जैविक पशुधन प्रणाली की ओर अग्रसर होना चाहिए।”

जैविक पशुधन उत्पादन क्या है?
  • यह पारिस्थितिक सिध्दांतों पर आधारित खेती की समन्वित प्रणाली है।
  • यह फसल और पशुधन उत्पादन के पर्यावरण के अनुकुल तरीकों का उपयोग करता है। 
  • खेत पर ही उपलब्ध सभी संसाधनों का संरक्षण और उपयोग करता है। 
  • इनमें कीटनाशकों, संश्लेषित उर्वरकों, विकास हार्मोन व एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग शामिल नहीं होता है। 
“यह स्थायी, पारिस्थितिकी संगतपूर्ण, आर्थिक रुप से व्यवहार्य, सामाजिक रुप से न्यायपूर्ण तथा मानवीय उत्पादन प्रणाली है।”

जैविक पशुधन उत्पादन के सिध्दांत
  • यह जलवायु, मृदा, पौधे, पशु व मानव की परस्पर निर्भरता है।
  • इसमें फसल विविधिकरण के साथ पशुधन को भी प्रबंधित किया जाता है। 
  • पशु अपशिष्टों का पुनर्चक्रण। 
  • प्रकृति के साथ सद्भावना होना। 
  • ऊर्जा के गैर नवीनीकरणीय स्त्रोतों का कम से कम उपयोग करना। 
  • फार्म पर उपलब्ध सभी संसाधनों का उपयोग। 
  • बाह्य आदानों का कम से कम प्रयोग। 
  • इष्टतम आंतरिक इनपुट प्रणाली। 
जैविक पशुपालन - पर्यावरण के अनुकुल उत्पादन
  • कार्बनिक भूमियों में नाइट्रेट कंटेंट कम होता है।
  • बहुत कम कार्बनडाईऑक्साइड मुक्त करते हैं। 
  • पर्यावरण प्रदूषण को कम करता है। 
  • खेतों पर पोषक तत्वों के निष्छालन को कम करता है। 


जैविक पशुपालन - निम्न स्तर के किसानों के लिए एक जवाब 
  • यह व्यापक बाहरी इनपुट (आदानों) पर निर्भर नहीं करती है।
  • आंतरिक आदानों का इष्टतम प्रयोग करती है।
  • फार्म पर ही उपलब्ध संसाधनों का ही उपयोग व संरक्षण करता है। 
"उपरोक्त संतुलन को छोटे व सीमांत किसानों की ओर स्थानांतरित करता है।"

जैविक प्रमाणीकरण मानक
  • ‘प्रमाणीकरण‘ जैविक पशुधन उत्पादन के लिए बुनियादी आवश्यकता है।
  • उत्पादों का प्रमाणीकरण, पशुओं की उत्पत्ति से लेकर उनके उत्पादों के विपणन तक को सम्मिलित करता है। 
  • उत्पादों का उत्पादन, प्रसंस्करण तथा पैकेजिंग जैविक मानकों के अनुसार किया जाता है।
  • प्रमाणीकरण के बिना किसी भी उत्पाद को लेबल नहीं किया जा सकता है कि वह जैविक है। 
पांच महत्वपूर्ण जैविक मानक
  • यूरोपियन यूनियन रेगुलेशन
  • ऑर्गेनिक फूड प्रोडक्ट एक्ट ऑफ यूनाइटेड स्टेट अमेरिका 
  • ड्राफ्ट गाइडलाइन्स ऑफ वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन 
  • यूनाइटेड किंगडम रजिस्टर आफ ऑर्गेनिक फूड स्टेंडर्ड 
  • आई. एफ. ओ. एम. बेसिक स्टैंडर्ड 
"जैविक उत्पादों के लिए भारत सरकार ने भी भारतीय राष्ट्रीय मानक (एन.एस.ओ.पी., 2000) विकसित किया है।"

जैविक मानकों में सम्मिलित होने वाले विनिर्देशन

1. पशुओं के नस्ल एवं प्रजनन विधि
  • शुध्द पशु नस्लों को प्राथमिकता देना चाहिए।
  • नस्ल स्थानिय परिस्थितियों के अनुकुल होना चाहिए।
  • किसी भी क्रॉसब्रिडिंग की अनुमति नहीं होती है, केवल देशी नस्लों में सुधार करने के लिए विकल्प मात्र है। 
  • प्रजनन तकनीक प्राकृतिक होनी चाहिए। 
  • हार्मोनल ग्रीष्म उपचार की भी अनुमति नहीं होती है। 
  • कृत्रिम गर्भाधान व भ्रूण स्थानान्तरण तकनीक आदि की अनुमति नहीं होती है। 
2. पशुओं का चारा
  • पशुओं को 100 प्रतिशत जैविक रुप से उत्पादित चारे को खिलाना चाहिए।
  • 50 प्रतिशत से अधिक चारे खेत पर ही उगे हुए अथवा फार्म से ही आने चाहिए। 
  • पर्याप्त हरे चारे की आपूर्ति की जानी चाहिए। 
  • कृत्रिम ग्रोथ प्रमोटर, सिंथेटिक एपेटाइजर, परिरक्षक, कृत्रिम रंग, संश्लेषित एमीनो एसिड, पायसीकारक, यूरिया आदि का इस्तेमाल निषिध्द होता है। 
3. पशुओं का आवास
  • जानवरों को इमारतों अथवा पिंजरों में बंद नहीं करना चाहिए।
  • जानवरों को चरने के लिए पर्याप्त स्थान उपलब्ध कराना चाहिए। 
  • आवास में पर्याप्त आवाजाही, अधिकतम शुद्ध ताजी हवा तथा रोशनी की उपलब्ध्ता होनी चाहिए।
  • उपयुक्त आकार के झुंड में पषुओं को रखना चाहिए। 
  • सूखे कूड़े का उपयोग बेडिंग के लिए करना चाहिए। 
  • बाहरी क्षेत्र, आंतरिक क्षेत्र से 75 प्रतिशत अधिक होना चाहिए। 
4. रोग प्रतिरक्षण
  • जैविक उत्पादन में एक वाक्य प्रसिद्ध है - "रोगथाम इलाज से बेहतर है"
  • विशिष्ट बिमारी से बचाव को ध्यान में रखते हुए नस्लों का चयन करना चाहिए। 
  • पशुओं का पालन ऐसे करना चाहिए, जिससे वे बिमारी व संक्रमण के लिए प्रतिरोधी हो सकें। 
  • अच्छी गुणवत्ता वाले चारे का प्रयोग पशुओं के प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करती है।
  • पर्याप्त स्थान की उपलब्धता अधिक भीड़ से पषुओं को बचाती है और इससे जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं को रोकती है। 
  • वैक्सीन का प्रयोग केवल तभी किया जा सकता है जब बिमारी को अन्य प्रबंधन तरीकों द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता। 
5. उपचार
  • पारंपरिक पशु चिकित्सा दवाओं अथवा रोग निरोधकों पर निर्भरता कम करनी चाहिए (एंटीबायोटिक, कृमिनाशक आदि)।
  • गैर एलोपैथिक दवा, प्राकृतिक दवा, होम्योपैथिक विधि, आयुर्वेदिक दवाओं, हर्बल दवा आदि पर जोर दिया जाना चाहिए। 
  • केवल आपातकालीन स्थिति में पारंम्परिक पशु चिकित्सा दवाओं की अनुमति है, जब उपयोग किया जाता है तो, होल्डिंग अवधि कानूनी रुप से आवश्यक अवधि से दोगुनी होनी चाहिए। 
6. पशु स्वास्थ्य एवं कल्याण

निम्न बिंदुओं में उत्तम होना चाहिए -

सामान्य स्वास्थ्य - उत्पादन

शरीरिक दशा

जीर्ण संक्रमण

थन के सूजन की संभावना

दैहिक कोशिकाओं का संख्या

परजीवी, जैविक फार्म में एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या उत्पन्न करते हैं, इन परजिवीयों से सूअर, कुक्कुट व भेड़ भी प्रभावित होते हैं। इसके लिए परिर्वतित (घुर्णी) चराई या परजीवियों का जैविक नियंत्रण करना चाहिए।

7. अपशिष्ट प्रबंधन
  • स्त्रोत पर ही तरल या ठोस अपशिष्ट को उपचारित किया जाना चाहिए, इन्हें प्राकृतिक जल स्त्रोतों में नहीं छोड़ना चाहिए।
  • इन्हें पुर्नचक्रण द्वारा फार्म पर ही उपयोग करना चाहिए। 
जैविक उत्पाद - एक सुरक्षात्मक पहलू
  • पशु उत्पादों में एंटीबायोटिक, हार्मोन व कीटनाशकों के अवशेष उपलब्ध नहीं होने चाहिए।
  • जैविक उत्पादन प्रणाला में एंटीबायोटिक्स को प्रोबायोटिक्स जैसे उपायों द्वारा प्रतिस्थापित करना चाहिए।
  • फीड एडिटिव्स का प्रयोग उत्पादों में नहीं करना चाहिए। 
  • "जैविक उत्पाद निश्चित रुप से मानव स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।"
जैविक पशुधन उत्पादन की सीमाएं
  • एक बड़ा नियंत्रित क्षेत्र विकसित कर पाना मुष्किल है।
  • फार्म पर भूमि के इष्टतम उपयोग पर जैविक खेती हस्तक्षेप कर सकती है। 
  • जैविक मांस के उत्पादन की लागत बहुत अधिक है। (सूअर के मांस के मामले में 85.2 प्रतिशत अधिक है) 
  • जैविक दूध व मांस का उत्पादन उनकी उपलब्धता को और कम कर सकती है। 
  • परिरक्षकों की अस्वीकृति का खाद्य आपूर्ति और भोजन की सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
  • कुछ रसायनों के उपयोग के बिना मांस और मांस उत्पादों का प्रसंस्करण और संरक्षण मुष्किल है, जैसे - ट्राई सोडियम फास्फेट, सोडियम नाइट्रेट आदि। 
भारत में जैविक पशुपालन के विकास में बाधाएं
  • भूमि जोत के छोटे आकार
  • सक्षरता का निम्न स्तर 
  • जैविक उत्पादन प्रणाली के बारे में जानकारी की कमी 
  • चारों व दानों का अपर्याप्त उत्पादन 
  • प्रमाणीकरण की उच्च लागत 
  • विपणन सुविधओं की अनुस्थिति 
निष्कर्ष
  • जैविक उत्पादन एक सख्त पशु कल्याण उपायों को सुनिश्चित करता है।
  • बेहतर टिकाऊ उत्पादन सुनिश्चित करता है। 
  • पौष्टिक, स्वस्थ व प्रदूषण मुक्त भोजन का उत्पादन करता है।
  • लाभोन्मुख नहीं है, लेकिन सामाजिक लाभ की ओर उन्मुख है।
  • यह प्रकृति की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, यह संपूर्ण पारिस्थिक तंत्र जैसे- पौधें, जन्तु, मृदा, जल व सूक्ष्म जीवों को संरक्षित रखता है। 
"जैविक पशुधन उत्पादन की जोरों से सिफारिश की जा रही है एवं इसे संभवतः अधिक से अधिक हद तक अभ्यास में लाने का प्रयास करना चाहिए।"