यह मक्का के पौधे का वह अनिशेचित भुट्टा होता हैं, जिसे सिल्क निकलने के 2-3 दिन के अंदर तोड़कर उपयोग में लाया जाता हैं। इसका उपयोग सलाद, सूप, सब्जी, अचार एवं कैण्डी, पकौड़ा, कोफ्ता, टिक्की, बर्फी, लड्डू, हलुवा, खीर इत्यादि व्यंजन बनाने में किया जा सकता हैं। यह मक्का बहुत ही पौष्टिक एवं स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ हैं, जिसको सभी लोग उपयोग में ला सकते हैं। शिशु मक्का पत्ती में लिपटी होने के कारण कीटनाशक दवाओं के प्रभाव से मुक्त होती हैं, इससे फास्फोरस भरपुर मात्रा में पाया जाता हैं। इसके अतिरिक्त इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, लोहा, कैल्शियम तथा विटामिन भी पाया जाता हैं, इसमें कोलेस्ट्राल नहीं होता हैं तथा रेशों की अधिक मात्रा होने के कारण यह एक निम्न कैलोरी युक्त आहार हैं, जो हृदय रोगियों के लिए लाभदायक होता हैं। 

भूमि का चयन 

शिशु मक्का की खेती के लिए पर्याप्त जीवांश युक्त दोमट भूमि उपयुक्त होती हैं। 

खेत की तैयारी 

एक जुताई मिट्टी पलट हल से तथा शेष दो तीन जुताई देशी हल या कल्टीवेटर द्वारा करके पाटा लगाकर खेत को तैयार कर लेना चाहिए। बुवाई के लिए खेत पलेवा करके बोना चाहिए, जिससे खेत में पर्याप्त नमी हो। 

प्रजातियों का चयन 

शिशु मक्का की खेती हेतु कम समय में पकने वाली मध्यम ऊँचाई की एकल क्रास संकर किस्में सबसे अधिक उपयुक्त होती हैं, जो निम्नलिखित हैं- 
  • एच.एम.-4 
  • प्रकाश 
  • बीएल-42 
  • पूसा अगेती संकर मक्का-3 
  • पूसा अगेती संकर मक्का-5 
  • विवके संकर मक्का-9 
कम समय में पकने वाली एकल क्रास सिंगल किस्में जिसमें खरीफ में सिल्क आने की अवधि 45-50 दिन, बसन्त में 70-75 दिन तथा जाड़े के मौसम में 120-130 दिन हैं। 

बुवाई का समय 

शिशु मक्का की बुवाई दिसम्बर-जनवरी के महीने को छोड़कर वर्ष के किसी भी समय बुवाई की जा सकती हैं। 

बुवाई की विधि 

शिशु मक्का की बुवाई के लिए 45×20 से.मी. के अन्तराल पर 2 पौधे प्रति हिल होना चाहिए। इस प्रकार पौधों की संख्या का घनत्व 175000 प्रति हेक्टेयर होना चाहिए। मेड़ों पर बुवाई करने पर मेंड़ से मेड़ एवं पौधे से पौधे की दूरी 60×25 से.मी. रखनी चाहिए। 

बीज दर 

संकर किस्मों का परीक्षण भार के अनुसार 25-30 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करना चाहिए। 

खाद एवं उर्वरक का प्रयोग 

अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 8-10 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की सड़ी हुई खाद तथा 150ः 60ः 60ः 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन, फाॅस्फोरस, पोटाश तथा जिंक की पूरी मात्रा एवं 1/3 भाग नाइट्रोजन बुवाई के समय, 1/3 भाग बुवाई के 25 दिन के बाद तथा शेष 1/3 भाग नाइट्रोजन बुवाई के 40-45 दिन के बाद प्रयोग करना चाहिए। 

खरपतवार नियंत्रण 

पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के 15-20 दिन बाद तथा दूसरी बुवाई के 30-35 दिन बाद करना चाहिए। एट्राजीन 50 प्रतिशत डब्लूपी 1.5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर को 500-600 लीटर पानी में घोलकर मक्का के अंकुरण से पहले खेत में छिड़काव करने से खरपतवार नहीं उगते और मक्का की फसल की बढ़वार तेजी से होती हैं। 

सिंचाई 

मौसम एवं फसल के अनुसार 2-3 सिंचाई की जरूरत होती हैं। पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद, दूसरी फसल की घुटने तक ऊँचाई होने पर तथा तीसरी फूल (नरमंजरी) आने से पूर्व करनी चाहिए। 

नरमंजरी की तोड़ाई 

जैसे ही पौधे में नरमंजरी निकलना प्रारम्भ हो उसे उसके आधार से तोड़कर अलग कर देने से शिशु भुट्टे की गुणवत्ता में सुधार होता हैं तथा भुट्टे भी अधिक मात्रा में निकलतेे हैं। 

भुट्टों की तुड़ाई 

भुट्टों से सिल्क निकलने के 24 घन्टे के अन्दर शिशु भुट्टे तोड़ लेने चाहिए। देरी से तुड़ाई करने पर गुणवत्ता में कमी आती हैं। 15 दिन के अन्दर 2-3 तुड़ाई की जा सकती हैं। 

उपज 

अच्छी तरह से खेती करने से शिशु मक्का की 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरा चारा भी प्राप्त हो जाता हैं। 

शिशु भुट्टों का भण्डारण एवं संवहन 

तुड़ाई के तुरन्त बाद ग्रेडिंग करके उनके आकार के आधार पर करने के लिए भुट्टों को ढ़ंकने वाली पत्तियों को हटाकर लेनी चाहिए तथा प्लास्टिक की टोकरी, थैले या पाॅलीथीन बैग में उन्हें बन्द करके विपणन हेतु भेज देना चाहिए। बर्फ के टुकड़ों के बीच रखकर उन्हें 5 दिन तक संरक्षित रखा जा सकता हैं। 

अन्तः फसल 

खरीफ में सब्जी एवं चारा हेतु लोबिया, उर्द, मूंग तथा रबी में शिशु मक्का के साथ आलू, मटर, राजमा, मेथी, धनिया, गोभी, षलजम, मूली, गाजर इत्यादि अन्तः फसल के रूप में लिया जा सकता हैं। 

आर्थिक लाभ 

शिशु मक्का की एक हेक्टेयर फसल से 45000-55000 रू. तक शुद्ध आय हो सकती हैं और वर्ष में 3-4 फसलें उगायी जा सकती हैं।