रबी मौसम में शाकाहारी भोजन खाने वालों के लिए मटर एक बहूत अच्छी फसल हैं। इसमें विटामिन के अतिरिक्त, खनिज जैसे- गंधक एवं फास्फोरस पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं। इसकी फलियों में 7.2% प्रोटीन पायी जाती हैं। जो भोजन का एक आवश्यक अंग हैं। दाल वाली मटर के अपेक्षा कृत सब्जी वाली मटर स्वाद में मीठी गहरी हरी लम्बी फलियों तथा अधिक पैदावार देने वाली होती हैं जिससे किसान को बाजार में बेचकर अच्छी मूल्य मिलता हैं। इस प्रकार सब्जी वाली मटर की खेती करके अधिक पैदावार लेने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक हैं।  

किस्में 

सब्जी मटर की खेती करने से पहले समयानुसार प्रजाति का चुनाव आवश्यक हैं। मुख्य प्रजातियाँ निम्न हैंः- 

पूसा प्रगतिः- यह अगेती प्रजाति हैं इसकी फलियाँ 80-85 दिन में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती हैं। इसमें 9-10 दाने होते ही और इसकी लम्बाई 8-10 सेमी. लम्बी होती हैं औसत पैदावार 80-90 कु./हे. होती हैं। 

बोनविलेः- यह मध्य मौसमी प्रजाति हैं इसकी फलियां 85 दिन में तैयार हो जाती हैं। फलियां 2-2 के गुच्छों में लगती हैं। जिसमें 8-10 दानें होते हैं तथा लम्बाई 8-10 सेमी. होती हैं औसत पैदावार 75 कु./हे. होती हैं। 

अर्किलः- यह अगेती किस्म हैं और बिजाई के 60-65 दिन बाद तुड़ाई हेतु तैयार हो जाती हैं। पौधे छोटे तथा फलियां हरी तथा 8-10 सेमी. लम्बी होती हैं। इसमें 7-9 दाने होते हैं, हरी फलियांे की औसत पैदावार 50-60 कु./हे. होती हैं। 

पी.एस.एम.-3ः- यह भी अगेती प्रजाति हैं यह 50-60 दिन में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती हैं। पौधे छोटे होते हैं। फलियां हरी तथा 8-10 सेमी. लम्बी होती हैं। इसमें 9-10 दाने होते हैं। औसत पैदावार 60-70 कु./हे. होती हैं। 

इन प्रजातियों के अतिरिक्त निम्न प्रजातियाँ भी सब्जी मटर की खेती हेतु उगा सकते हैं। 

अगेतीः- पंजाब अगेता, पूसा विपासा, अर्का अजीत, अर्का कार्तिक 

मध्यः- पंत उपहार, आजाद मटर-1, आजाद पी-3, जवाहर मटर-2, नरेन्द्र सब्जी मटर-1 एवं ई.-68 

जलवायु 

मटर के बीज के जमाव के लिए तापमान 20-22 डि.से. उपयुक्त होता हैं तथा पौधों की बढ़वार 18-20 डि.से. पर अच्छी होती हैं। 

भूमि 

अच्छे जल निकास वाली मटियार व दोमट भूमि मटर की खेती हेतु अच्छी होती हैं। मटर की खेती के लिए 6.0-7.5 पी.एच. मान वाली भूमि अधिक उपयुक्त होती हैं। 

खेत की तैयारी 

एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 3-4 जुताइयाँ कल्टीवेटर हल से करके मिट्टी को भुरभुरा एवं समतल बनायें। 

बुवाई 

सब्जी मटर की बिजाई मध्य सितम्बर से मध्य नवम्बर तक की जाती हैं। अगेती फसल के लिए सितम्बर के तीसरे सप्ताह से लेकर अक्टूबर के पहले सप्ताह तक तथा पिछेती काश्त के लिए अक्टूबर के अंत से नवम्बर के मध्य तक की जाती हैं। 

बीज की मात्रा एवं बीजोपचार 

अगेती फसल के लिए 75-100 कि.ग्रा/हे. एवं मध्य तथा पिछेती फसल के लिए 50-75 कि.ग्रा./हे. बीज की बुवाई करनी चाहिए। बीज बुवाई से पहले बीज को 2 ग्राम कैप्टान, थायरम या बाविस्टीन प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करना आवश्यक हैं। मटर बीज का राइजोबियम कल्चर के टीके से भी उपचारित करना चाहिए। बीजोपचार से जड़ गलन एवं सूखे से बचाव होता हैं। 

बिजाई की विधि 

अगेती फसल हेतुु बिजाई हेतु लाइन से लाइन की दूरी 20-25 सेमी. तथा मध्य एवं पिछेती फसल हेतु 30-40 सेमी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 3-5 सेमी. रखना चाहिए। मटर बीज को 5-7 सेमी. गहरा बो सकते हैं। मटर की बुवाई मेड़ बनाकर व समतल जमीन पर करना चाहिए। 

खाद एवं उर्वरक 

मटर एक दलहनी फसल होने के कारण इसमें नाइट्रोजन की कम मात्रा की आवश्यकता होती हैं। इसलिए इसे 8-10 टन गोबर की खाद के अतिरिक्त 30 कि.ग्रा. नाइट्रोजन व 50 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती हैं। इसमें से आधी नाइट्रोजन व पूरी फास्फोरस बुवाई से पहले और बाकी नाइट्रोजन बीज बुवाई के 4-5 सप्ताह बाद खड़ी फसल में देना चाहिए। चूंकि मटर की फसल के लिए कैल्षियम (कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट) का प्रयोग लाभकारी होता हैं। 

सिंचाई 

मटर की फसल हेतु पानी की कम आवष्यकता होती हैं। अच्छे जमाव के लिए पलेवा करके बुवाई करना चाहिए। भूमि की किस्म व जलवायु के अनुसार सिंचाई करना चाहिए। वैसे आवष्यकता पड़ने पर पहली सिंचाई फूल आने पर व दूसरी फलियों में दाने पड़ने के समय पर करना चाहिए। 

खरपतवार नियंत्रण 

खरपतवार की रोकथाम के लिए स्टाम्प 30 प्रतिशत् 3.5 लीटर/हेक्टेयर बुवाई के 3 दिन के अन्दर कर देना चाहिए। अधिक खरपतवार वाले खेत में बुवाई से 40-45 दिन पर एक निराई-गुड़ाई आवश्यक होती हैं। 

फसल सुरक्षा 

10 कि.ग्रा./हेक्टेयर ट्राईकोडर्मा विरडी बुवाई से पहले जमीन में प्रयोग करना बहुत लाभकारी होता हैं। सफेद चूर्णी रोग की रोकथाम के लिए 25 कि.ग्रा. सल्फेक्स या 500 ग्राम वाविस्टीन या 200 मिली. करोथेन 40 ई.सी. को 500 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए तथा रतुआ रोग से बचाव के लिए 1 कि.ग्रा. इण्डोफिल एम-45 को 500 लीटर पानी प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए। आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तर से 2-3 छिड़काव करें। 

फलबेधक व चूरड़ा कीड़ा (थ्रिप्स के रोकथाम के लिए 15 मिली. साईपरमेथ्रीन तथा चेपा व सुंरगी कीट की रोकथाम के लिए 1 लीटर रोगार 30 ई.सी. या 1.250 लीटर मेटासिस्टाॅक्स 25 ई.सी. को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए चिपकने वाला पदार्थ ट्राइट्रोन या सैन्डोविट का अवश्य प्रयोग करना चाहिए। 

तुड़ाई एवं उपज 

सब्जी वाली मटर की तुड़ाई फलियां पूर्ण विकसित होने पर तथा जब दाने भरे हुए व कोमल अवस्था में हो तभी कर लेना चाहिए। देर से तुड़ाई करने पर दोनों की मिठास कम हो जाती हैं जिससे बाजार भाव कम मिलता हैं। तुड़ाई सुबह व शाम को ही करनी चाहिए क्योंकि अधिक तापमान पर तुड़ाई करने पर स्वाद में कमी आ जाती हैं। बुवाई के समय व प्रजाति के अनुसार हरी मटर के उपज 75-150 क्विंटल/हेक्टेयर तक प्राप्त हो जाती हैं। 

छंटाई, पैकिंग एवं विपणन 

तुड़ाई के बाद कटी-फटी एवं अधिक पकी फलियों को छंटाई कर लेनी चाहिए। फिर जालीदार बोरी में पैक करनी चाहिए। यदि प्लास्टिक क्रेट्स में फलियांे को पैक कर बाजार में बिक्री हेतु ले जाने पर बाजार भाव अच्छा मिलती हैं। हरी मटर की फलियों को शीतगृह में जीरों डिग्री सेल्सियस तापमान तथा 85-95 प्रतिशत् आर्द्रता पर 2-3 सप्ताह तक अच्छी अवस्था में रखा जा सकता हैं।