गिलोय एक दिव्य औषधि है, जिसे लाखों लोगों ने उपयोग में ला कर कई बिमारियों से छुटकारा पाया है। गिलोय देखने में लगभग पान के पत्ते की तरह होती है। यह लता के रूप में उगती है और बढती है। गिलोय समूह में रहने वाला आरोही पौधा है पुराने तने 2 सेमी व्यास वाले होते है शाखाओं के गठीले निशानों से जड़ें निकालती है तनों और शाखाओं पर सफ़ेद अनुलंब दाग होते है इसकी छाल सलेटी - भूरी या हल्की सफ़ेद, मस्सेदार होती है और आसानी से छिल जाती है। इसकी पत्तियां 5 - 15 सेमी अंडाकार होती है। शुरू में ये झिल्लीदार होती है।
जलवायु एवं मिट्टी:
भूमि एवं जलवायु किसी भी प्रकार की भूमि में यह फसल हो सकती है जिस मिटटी में गीलापन या पानी रोकने की ज्यादा क्षमता हो वह इसकी फसल के लिए ज्यादा फायदेमंद होती है. आद्र् या नम जलवायु इस लता के लिए लाभप्रद होती है। यह पौधा उप उष्णकटिबंधीय जलवायु में जैविक तौर से भरपूर बलुई दोमट मिट्टी में उगाया जाता है। यह पौधा बहुत कठोर होता है और इसे लगभग सभी जलवायु में उगाया जा सकता है, लेकिन यह गर्म जलवायु को पसंद करता है।
बुवाई:
स्टेम कटिंग इस
पौधे की सबसे अच्छी प्रसार सामग्री है और मुख्य रूप से जून-जुलाई के महीने में की
जाती है। इस पौधे के प्रसार के लिए भी बीज का उपयोग किया जाता है, बुवाई से पहले
बीज को अंकुरण के लिए 24 घंटे तक पानी
में भिगोया जाता है। हाइड्रोप्रिमेड बीज मई-जुलाई के दौरान पॉलीबैग में बोए जाते
हैं।
बीज उपचार:
गिलोय एक
पर्वतारोही है जिसे आप आम, नीम इत्यादि जैसे बड़े पेड़ों पर पा सकते हैं। आपको सीधे एक तना
काटना होगा और इसे एक पेड़ के पास मिट्टी में डालना चाहिए (जिस पर यह चढ़ सकता है)
कुछ पानी के साथ यह अपने तने वाले भाग से बढ़ता है और इसका तना सबसे अधिक लाभकारी
भाग होता है।
उगाने की सामग्री:
दो गांठों के
साथ 6-8 इंच के कटिंग
सीधे लगाए जाते हैं। जून-जुलाई में मुख्य पौधे से प्राप्त तने 24 घंटे के भीतर
सीधे खेत में लगाए जाते हैं।
खेती की तैयारी:
खेत को
सर्वप्रथम खरपतवार मुक्त किया जाता है। उसके बाद 10 टन FYM और नाइट्रोजन
की 75 किग्रा मात्रा
प्रति हेक्टेयर डाली जाती है। बेहतर पैदावार के लिए 3 मी. x 3 मी. की दूरी
उचित मानी जाती है। पौधे को बढ़ने के लिए आधार की आवश्यकता होती है, इसलिये लकड़ी
की खपचियों का राहारा दिया जाता है। पौधों के विकास के शुरुआती चरणों के दौरान
रिक्त स्थान को लगातार निराई करके खरपतवार रहित रखना चाहिए। फसल वर्षा आधारित
परिस्थितियों में लगाई जाती है, हालांकि कभी-कभी अधिक ठंड और गर्मी के दौरान सिंचाई फसल को
प्रतिकूल परिस्थितियों से बचाने में मदद कर सकती है।
पौध तैयार करना:
गिलोय की खेती के लिए खेत में मेड़ बाड़ या बड़े पौधे का सहारा लेना चाहिए या खेत में लता को चलने में आसानी हो। अच्छे सशक्त और जल्दी बढ़ने वाले पौधों से 15- 20 से.मी. लंबाई की 4-5 आंखो वाली उंगली से थोड़ी मोटी शाखाओं के टुकड़ों को इस्तेमाल करे, इन टुकड़ों को मई॰जून माह में लगाकर पौधशाला की तैयारी करनी चाहिए। इसमें कलम लगाते वक्त रेज्ड बेडस या पालीथीन बैग का प्रयोग करना चाहिए कलम के निचले हिस्सो को रूटेक्स पाउडर के घोल में 15-20 मिनट डुबोकर रखने के बाद लगाना चाहिए पौधशाला का छाया में होना जरूरी होता है, इसके अलावा पौधशाला में एक दिन छोड़कर दूसरे दिन सिंचन करना चाहिए 30-45 दिन बाद पौधे स्थानांतरण योग्य हो जाते हैं कृषि योग्य भूमि में खेती करते वक्त दो पौधे और कतार में 120-150 से.मी. का अंतर रखना चाहिए इस फसल को अतिरिक्त खाद देने की जरूरत नहीं है मगर स्थानांतरण के 20-25 दिन बाद प्रति पौधा 15-20 ग्राम नत्रजन की मात्रा देने से पौधे की वृद्धि में तेजी आती है। मुख्य पौधे से जून-जुलाई में प्राप्त तने 24 घंटों के अंदर खेत में सीधे रोपे जाते हैं।
पौधों की दर:
एक हेक्टेयर भूमि में पौधारोपण के लिए 2500 कलमों की जरूरत पड़ती है।
मिट्टी तैयार
करना और उर्वरक का प्रयोग:
जमीन की अच्छी जुताई और खरपतवार से मुक्त किया जाना चाहिए। मिट्टी तैयार करते समय प्रति हेक्टेयर 10 टन उर्वरक और नाइट्रोजन की आधी खुराक (75 किलो) प्रयोग की जाती है। पौधों को रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग के बिना उगाया जाना चाहिए। फार्म यार्ड खाद (FYM), वर्मीकम्पोस्ट, हरी खाद जैसी जैविक खादों का उपयोग प्रजातियों की आवश्यकता के अनुसार किया जा सकता है।
पौधरोपण और दूरी:
गांठो सहित तने की कटिंग को सीधे ही खेत में बोया जाता है. बेहतर उपज के लिए 3 मी.x3 मी. की दूरी सही मानी जाती है। उगाने के लिए पौधे को लकड़ी की खपच्चियों के सहारे की जरूरत होती है।झाड़ी या पेड़ उगाने से भी पौधे को सहारे मिल सकता है।
संवर्धन विधियां:
75 किलों नाइट्रोजन के साथ 10 टन उर्वरक की खुराक सही मानी जाती है अच्छी बढ़त के लिए करीब दो से तीन बार निराई - गुड़ाई की जरूरत होती है। बार- बार निराई व गुड़ाई करके कतारों में पौधों के बीच की दूरी को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए।
सिंचाई विधि:
यह फसल वर्षों
जनित स्थितियों में उगाई जाती है. तथापि, अत्यधिक शीत और गर्म मौसम के दौरान आकस्मिक सिंचाई लाभकारी रहेगी.
इसके लिए 50 मिली से 100 मिली पानी की
आवश्यकता होती है। यह विभिन्न प्रकार के बड़े पेड़ों जैसे आम, नीम आदि पर
चढ़ने का एक प्रकार है जहाँ से तने को काटकर कुछ पानी के साथ एक पेड़ के पास
मिट्टी में डाल सकते हैं।
फसल पकना और कटाई:
तने की कटाई पतझड़ के समय की जाती है जब यह 2.5 सेमी.से अधिक व्यास का हो जाता है. आधार का हिस्सा फिर से बढ्ने के लिए छोड़ दिया जाता है. बीज परिपक्व होने के लिए लगभग दोगुने से अधिक समय लेते हैं और समान मात्रा में उपज देते हैं। बचे हुये भाग से पुनः नयी शाखाएं निकल सकती हैं। कटाई के बाद पौधे को छोटे टुकड़ों में काटकर छाया में सुखाया जाता है। इन्हें थैलों में संग्रहित किया जा सकता है, और हवादार गोदाम में भंडारण किया जा सकता है।
कटाई पश्चात प्रबंधन:
तने को सावधानीपूर्वक छोटे टुकड़ों में कांटे और छाया में सुखाएं। इसे जूट के बोरें में रखकर ठंडे और हवादार भंडार गोदाम में रखा जा सकता है।
पैदावार:
पौधे से करीब दो वर्षो में प्रति हेक्टेयर करीब 1500 किलो ताजा तने की उपज होती है। जिसका शुष्क भार 300 किलों रह जाता है।
0 Comments