मूली सर्दी ऋतु की फसल हैं लेकिन कुछ किस्में गर्मी में भी लगाई जा सकती हैं। 

भूमि एवं जलवायु- 
मूली प्रायः सभी प्रकार की भूमि में उगाई जा सकती हैं लेकिन हल्की और भुरभुरी मिट्टी इसके लिए अच्छी रहती हैं। मूली के स्वाद, बनावट और आकार को अच्छा बनाने के लिए 10 से 15 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान अनुकूल रहता हैं। 

उपयुक्त किस्में- 

पूसा चेतकी, पूसा रश्मि, जापानीज व्हाईट, पूसा हिमानी, आर-33, फैंच ब्रेक फास्ट (गृह वाटिका हेतु), हिल क्वीन, रेपिड रेड व्हाईट। किस्मों के अनुसार बुवाई का समय निम्न प्रकार हैं।

किस्म

बुवाई का उपयुक्त समय

पूसा चेतकी, आर-33, पंजाब अगेती

मार्च से अगस्त

पूसा रश्मि, पूसा स्वेता, पूसा कूल्फी

सितम्बर से नवम्बर

जापानीज व्हाईट, हिल क्वीन

अक्टूबर से मध्य दिसम्बर

पूसा हिमानी

मध्य दिसंबर से जनवरी तक

बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर 10 से 12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती हैं।


बुवाई- 

बीज की बुवाई मूली की किस्म पर निर्भर करती हैं लेकिन बुवाई खेत में मेड़ों पर ही करें। मेड़ से मेड़ की दूरी 30 से 40 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 8 से 10 से.मी. रखें।  

खाद एवं उर्वरक- 

खेत तैयार करते समय भूमि में अच्छी तरह सड़ी गली गोबर की खाद 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से दें। बुवाई के एक-दो दिन पहले 20 किलो नत्रजन, 48 किलो फाॅस्फोरस तथा 48 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से दें। जड़ बनने के समय खेत में 25 किलो नत्रजन प्रति हेक्टेयर ऊपर से दें। 

सिंचाई- 

गर्मी के दिनों में सिंचाई 5 से 6 दिन के अंतराल से करें। बरसात में आवश्यकतानुसार तथा सर्दी में 10 से 12 दिन के अंतर पर सिंचाई करें। क्यारियों में खरपतवार न पनपने दें। जहां मेड़ों पर बुवाई की गई हो वहां जड़ बनने के समय एक बार मिट्टी चढ़ायें। 

खरपतवार प्रबंधन 

मूली की जड़ो में खरपतवार नियंत्रण करने के लिए पूरी फसल में 2 से 3 निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। जब जड़ों की बढ़वार शुरू हो जाए तो एक बार मेंड़ों पर मिट्टी चढ़ानी चाहिए। खरपतवार नियंत्रण हेतु बुवाई के तुरंत बाद 2 से 3 दिन के अंदर 3.3 लीटर पेंडामेथलीन 600 से 800 लीटर पानी के साथ घोलकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए। 

रोग प्रबंधन 

मूली में व्हाईट रस्ट, सरकोस्पोरा कैरोटी, पीला रोग, अल्टरनेरिया पर्ण, अंगमारी रोग लगते है। इन्हे रोकने के लिए फफूंद नाशक दवा डाईथेन एम 45 या जेड 78 का 0.2% घोल से छिड़काव करना चाहिए या फिर 0.2% ब्लाईटेक्स का छिड़काव करना चाहिए। 

कीट प्रबंधन 

मूली की फसल में रोग के साथ-साथ कीटो का भी प्रकोप होता है. मूली में माहू, मूंगी, बालदार कीड़ा, अर्धगोलाकार सूंडी, आरा मक्खी, डायमंड बैक्टाम कीट लगते है। इनकी रोकथाम हेतु मैलाथियान 0.05% तथा 0.05% डाईक्लोरवास का प्रयोग करना चाहिए। 

खुदाई- 

पूर्ण विकसित जड़ जिसमें जाली न पड़ी हो खुदाई के लिए उपयुक्त होती हैं। जड़े हमेशा नर्म और मुलायम होनी चाहिए। पूसा चेतकी किस्म की जड़े 40 से 45 दिन में तैयार हो जाती हैं अतः इनकी खुदाई के समय का ध्यान रखें।