सोयाबीन की फसल के प्रमुख खरपतवार 

सोयाबीन फसलमें उगने वाले खरपतवारों को मुख्यतः तीन श्रेणी में विभाजित किया जा सकता हैं। 

चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारः इस प्रकार के खरपतवारों की पत्तियां प्रायः चौड़ी होती हैं तथा यह मुख्यतः दो बीजपत्रीय पौधे होते हैं जैसे: 1. महकुंआ (एजेरेटम कोनीजाइड्स) 2. जंगली चैलाई (अमरेन्थस बिरिडिस) 3. सफेद मुर्ग (सिलोसिया) 4. जंगली जूट (कोरकोरस एकुटैन्गुलस) 5. बनमकोय (फेप्तेलिस मिनिमा) 6. हजारदाना (फाइलेन्थस निरूरी) 7. कालादाना (आइपोमिया) 

घासकुल के खरपतवारः इस कुल के खरपतवारों की पत्तियां पतली एवं लम्बी होती हैं तथा इनकी पत्तियों में समांतर धारियां पाई जाती हैं। यह एक बीजपत्रीय पोधे होते हैं जैसे 1. सांवा (इकाईनोक्लोआ कोलोना) 2. कोदो (इल्यूसिन इंडिका)। 

मोथा परिवार के खरपतवारः इस परिवार के खरपतवारों की पत्तियां लम्बी तथा तना तीन या चार किनारे वाला ठोस होता हैं। जड़ों में गांठें (राइजोम) पाये जाते हैं जो भोजन इकट्ठा करके नये पौधों को जन्म देने में सहायक होते हैं 1. कथई मोथा (साइपेरस रोटन्डस) 2. पीला मोथा (साइपेरस इरिया)। 

खरपतवारों से हानियां 
सोयाबीन खरीफ मौसम में उगाई जाती हैं। अतः उच्च तापमान एवं अधिक नमी खरपतवार की बढ़ोत्तरी में सहायक होते हैं। इसलिए यह आवश्यक हो जाता हैं कि उनकी बढ़ोत्तरी रोकी जाये जिससे फसल को बढ़ने के लिये अधिक से अधिक जगह, नमी, प्रकाश एवं उपलब्ध पोषक तत्व मिल सकें। प्रयोगों सके यह सिद्ध हो चुका हैं कि सोयाबीन के खरपतवारों को नष्ट न करने पर उपज में 25 से 70 प्रतिशत् तक की कमी हो सकती हैं। इसके अलावा खरपतवार फसल के लिये भूमि में खाद एवं उर्वरक द्वारा दिये गये पोषक तत्वों में से 30-60 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 8-10 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 40-100 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि से शोषित कर लेते हैं। फलस्वरूप पौधे की विकास गति धीमी पड़ जाती हैं और अंत में कम उपज प्राप्त होती हैं। इसके अतिरिक्त खरपतवार फसल को नुकसान पहुंचाने वाले अनेक प्रकार के कीड़े एवं बीमारियों के रोगाणुओं को भी आश्रय देते हैं। 

खरपतवार नियंत्रण कब करें 
प्रायः यह देखा गया है कि कीड़े, मकोड़े एवं रोग व्याधि लगने पर उसके निदानकी ओर तुरंत ध्यान दिया जाता हैं लेकिन किसान खरपतवारों को तब तक बढ़ने देते हैं जब तक कि वे हाथ से उखाड़ने योग्य न हो जायें। उस समय तक खरपतवार फसल को काफी नुकसान कर चुके होते हैं। सोयाबीन के पौधे प्रारंभिक अवस्था में खरपतवारों से मुकाबला नहीं कर सकते। अतः खेत को खरपतवार रहित रखना आवश्यक होता हैं। यहां पर यह भी बात ध्यान देने योग्य हैं कि फसल को हमेशा न तो खरपतवार मुक्त रखा जा सकता हैं और न ही ऐसा करना आर्थिक दृष्टि से लाभकारी हैं। अतः क्रांतिक (नाजुक) अवस्था विशेषकर निंदाई करके खरपतवार मुक्त रखा जाये तो फसल का उत्पादन अधिक प्रभावित नहीं होता हैं। सोयाबीन में यह नाजुक अवस्था बोनी के 20-45 दिनों के बीच होती हैं। 

खरपतवारों से कैसे निपटें 

खरपतवारों की रोकथाम में ध्यान देने योग्य बात यह हैं कि खरपतवारों का नियंत्रण सही समय पर एक या एक से अधिक विधियां अपनाकर करें चाहे किसी भी प्रकार से करें। सोयाबीन की फसल में खरपतवारों की रोकथाम निम्नलिखित विधियों से की जा सकती हैं। 

निवारक विधिः इस विधि में वे क्रियायें शामिल हैं जिनके द्वारा सोयाबीन के खेत में खरपतवारों को फैलने से रोका जा सकता हैं जैसे प्रमाणित बीजों का प्रयोग, अच्छी सड़ी कम्पोस्ट एवं गोबर की खाद का प्रयोग, खेत की तैयारी में प्रयोग किये जाने वाले यंत्रों की प्रयोग से पूर्व अच्छी तरह से सफाई इत्यादि। 

यांत्रिक विधिः यह खरपतवारों पर काबू पाने की सरल एवं प्रभावी विधि हैं। सोयाबीन की फसल में बुवाई के 20-45 दिन के बीच का समय खरपतवारों से प्रतियोगिता की दृष्टि से क्रांतिक होता हैं। अतः दो निंदाई से खरपतवारों की बढ़वार पर नियंत्रण पाया जा सकता हैं। पहली निंदाई बुवाई के 20-25 दिन बाद तथा दूसरी 40-45 दिन बाद करना ज्यादा लाभकारी होता हैं। 

रसायनिक विधिः खरपतवार नियंत्रण के लिये जिन रसायनों का प्रयोग किया जाता हैं उन्हें खरपतवारनाशी (हर्बीसाइड) कहते हैं। रसायनिक विधि अपनाने से प्रति हेक्टेयर लागत कम आती हैं तथा समय की भी बचत होती हैं। लेकिन इन रसायनों का प्रयोग करते समय यह ध्यान रखें कि इनका प्रयोग उचित मात्रा में उचित ढ़ंग से तथा उपयुक्त समय पर हो अन्यथा लाभ की बजाय हानि की संभावना ज्यादा रहती हैं। सोयाबीन की फसल में प्रयोग किये जाने वाले विभिन्न् खरपतवारनाशी रसायनों का विस्तृत विवरण सारणी में दिया गया हैं। 

खरपतवारनाशी रसायनों के प्रयोग में सावधानियां 
  • प्रत्येक खरपतवारनाशी रसायनों के डिब्बों पर लिखें निर्देषों तथा उसके साथ दिये गयें पर्चे को ध्यानपूर्वक पढ़े तथा उसमें दिये गयें तरीकों का विधिवत पालन करें। 
  • खरपतवारनाशी रसायन को उचित समय पर छिड़कें। अगर छिड़काव समय से पहले या बाद में किया जाता हैं तो लाभ के बजाय हानि की संभावना अधिक रहती हैं। 
  • खरपतवारनाशी को पूरे खेत में समानरूप से छिड़के। 
  • खरपतवारनाशी का छिड़काव जब तेज हवा चल रही हो तो नहीं करें तथा जब छिड़के मौसम साफ हो। 
  • छिड़काव करते समय इसके लिये विषेष पोषाक, दस्ताने तथा चश्मे इत्यादि का प्रयोग करें ताकि रसायन शरीर पर न पड़े। 
  • छिड़काव कार्य समाप्त होने के बाद हाथ, मुंह साबुन से अच्छी तरह से धो लें तथा छिड़काव के बाद यदि स्नान कर लें तो ज्यादा अच्छा होगा। 
सोयाबीन में प्रयोग किये जाने वाले खरपतवारनाषी

खरपतवारनाशी
मात्रा (कि.ग्रा.) सक्रिय पदार्थ/हे.
प्रयोग का समय
नियंत्रित खरपतवार
पेन्डीमेथलिन
1.0
बुवाई से पहले छिड़क कर भूमि में मिला दें।
संकरी एवं कुछ चौड़ी पत्ती वाले
मेटोलाक्लोर
1.0
बुवाई के बाद परन्तु अंकुरण से पूर्व
संकरी एवं कुछ चौड़ी पत्ती वाले
डायक्लोसुलम
0.22
तदैव
तदैव
मेट्रीब्यूजिन
0.5
तदैव
तदैव
सल्फेन्ट्राजोन+क्लोमेजोन
0.725
तदैव
तदैव
इमाजेथापाइर
0.10
बुवाई के 15-20 दिन बाद
चौड़ी पत्ती वाले
क्लोरीमुरान
0.015-0.020
तदैव
चौड़ी पत्ती वाले
मेअसल्फ्यूरान
0.004-0.006
तदैव
चौड़ी पत्ती वाले
क्वीजालोफाप-पी. टेफुरिल
0.44
बुवाई के 15-20 दिन बाद
संकरी
फेनोक्ससप्राप पी. इथाइल
0.70
बुवाई के 15-20 दिन बाद
संकरी