राहुल गौतम
पी.एच.डी. स्कॉलर, जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर

किसान खेत की जुताई का काम अक्सर बुवाई के समय करते है, जबकि फसल के अच्छे उत्पादन के लिए रबी फसल की कटाई के तुरंत बाद मिटटी पलटने वाले हल से गहरी जुताई कर ग्रीष्म ऋतु में खेत को खाली रखना बहुत ही ज्यादा लाभप्रद हो सकता है क्योंकि फसलो में लगने वाले कीट जैसे सफ़ेद लट, कटवा इल्ली, लालभृग की इल्ली तथा व्याधियो जैसे उख़टा की रोकथाम की दृष्टी से गर्मियों में गहरी जुताई करके खेत खाली छोड़ने से भूमि का तापमान बढ जाता है जिससे भूमि में मौजूद कीटो के अंडे, प्यूपा, लार्वा, और लट ख़त्म हो जाते है जिसके परिणाम स्वरूप रबी एवं खरीफ में बोई जाने वाली तिलहनी, दलहनी खाद्दान फसलो और सब्जिओ में लगने वाले किटों-रोगों का प्रकोप कम हो जाता है 

क्योकि जुताई के समय भूमि में रहने वाले किट उनको अपरिपक्व अवस्था जैसे प्यूपा, लार्वा, भूमि की सतह पर आ जाते हैं जिन पर प्रतिकूल वातावरण एवं उनके प्राक्रर्तिक शत्रुओं विसेसकर परभक्षी पक्षियो का आक्रमण सहज हो जाता है अत: गर्मी में गहरी जुताई करने से एक सीमा तक कीडे एवं बीमारीयो से छुटकारा पाया जा सकता है
गर्मीयो की गहरी जुताई के लाभ
  • गर्मी की जुताई से सूर्य की तेज किरने भूमि के अंदर प्रवेश कर जाती है जिससे भुगत कीटो के अंडे, प्यूपा, लार्वा, लटे व व्यस्क खत्म हो जाते है 
  • फसलो में लगने वाले भूमिगत रोग जैसे उखटा, जड़गलन के रोगाणु व सब्जिओ की जड़ो में गाठ बनाने वाले सूत्रकर्मी भी नस्ट हो जाते है 
  • गहरी जुताई से दुब, कास, मोथा, वायासुरी आदि ख़रपतवारो से भी मुक्ति मिलती हैं। 
  • गर्मी की गहरी जुताई से गोबर की खाद व खेत में उपलब्ध अन्य कार्बनिक पदार्थ भूमि में भलीभांति मिल जाते है, जिससे अगली फसल को पोषक तत्व आसानी से शीघ्र उपलब्ध हो जाते है 
  • खेत की मिटटी में ढेले बन जाने से वर्षा जल सोंकने की क्षमता बढ़ जाती है जिससे खेती में ज्यादा समय तक नमी बनी रहती है। 
  • ग्रीषमकालीन जुताई से खेत का पानी खेत में ही रह जाता है, जो बहकर बेकार नहीं होता तथा वर्षाजल के बहाव द्वारा होने वाली भूमि कटाव में भारी कमी होती है। 
  • जुताई करने से खेत की भूमि में उपलब्ध पोषक तत्वों का वायु द्वारा होने वाला नुकसान व म्रदा अपरदन काम होता है।

जुताई कब करे 
गर्मियों की जुताई का उपयुक्त समय यथा संभव रबी की फसल काटते ही आरम्भ कर देनी चाहिए क्योंकि फसल काटने के बाद मिटटी में थोड़ी नमी रहने से जुताई में आसानी रहती है तथा मिटटी के बड़े-बड़े ढेले बनते है| जिससे भूमि में वायु संचार बढता है जुताई के लिए प्रातः काल का समय सबसे अच्छा रहता है क्योंकि किटो के प्राकर्तिक शत्रु परभक्षी पक्षियों की सक्रियता इस समय अधिक रहती है| अत प्रातः काल के समय में जुताई करना सबसे ज्यादा लाभदायक होता है 

गर्मियों की जुताई कैसे करे 
गर्मी की जुताई 15 से.मी. गहराई तक किसी भी मिट्टी पलटने वाले हल से ढलान के विपरीत करनी चाहिए लेकिन बरनी क्षेत्र में किसान ज्यादातर ढलान के साथ-साथ ही जुताई करते है जिससे वर्षा जल के साथ म्रदाकणों के बहने की क्रिया बढ़ जाती है अत खेती में हल चलाते समय इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि यदि खेत का ढलान पूर्व से पच्शिम दिशा की तरफ हो तो जुताई उत्तर से दक्षिण की ओर यानी ढलान के विपरीत ढलान को काटते हुए करनी चाहिये येशे करने से बहुत सारा वर्षा का जल म्रदा सोख लेती है और पानी जमीन की निचली स्थान तक पहुच जाता है जिससे न केवल म्रदा कटाव रुकता है बल्कि पोषण तत्व भी बहाकर नहीं जा पायगे

खेत की तैयारी मे प्रयोग होने वाले कृषि यंत्र 
  1. मिट्टी पलटने वाला हल कल्टीवेटर
  2. कल्टीवेटर 
  3. तवेदार हैरों 
  4. ट्रैक्टर चालित रोटावेटर एवं पावर टिलर
सर्वप्रथम पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से जाती है उसके पश्चात् कल्टीवेटर द्वारा मिट्टी भुरभुरी बनायी जाती है। यदि जड़ें झुंडियां, ढेले खेत में अधिक हो और मिट्टी भारी हो, तो तवेदार हैरो द्वारा जुताई करने से खरपतवार व जड़ें झुंडिया कट-पिट कर नष्ट हो जाती है तथा ढेले मिट्टी के कणों में विभक्त हो जाते है तथा मिट्टी भुरभुरी हो जाती है। इससे मिट्टी के पानी सोखने की क्षमता भी बढ़ती है। रोटावेटर द्वारा जुताई करने से धन एवं समय दोनों की बचत होती है तथा खेत एक से दो जुताई में तैयार हो जाता है। 

सावधानियां 
गर्मी की जुताई करते समय निम्न सावधानियां ध्यान में रखे:- 
  • मिट्टी के ढेले बड़े- बड़े रहे तथा मिट्टी भुरभुरी न होने पाए अन्यथा गर्मियों में तेज हवा द्वारा मृदा अपरदन की समस्या बढ़ जाएगी। 
  • ज्यादा रेतीले इलाकों में गर्मी की जुताई न करें। 
  • बारानी क्षेत्रों में जुताई करते समय इस बात का ख्याल रखना भी जरूरी हैं की ज्यादा से ज्यादा फसलों के अवशेषों को जमीन पर आवरण की तरह ही पड़ा रहने दे। इससे मृदा को वर्षाजल द्वारा होने वाले मृदा अपरदन के नुकसान से बचाया जा सकता हैं और वर्षा के पानी के साथ बह रही मृदा को भी रोका जा सकता हैं।