एफिड (चेंपा)- इस कीड़े का आक्रमण जनवरी-फरवरी में होता हैं। काले रंग के ये नन्हें कीड़े फूल पर व कलियों पर चिपके रहते हैं इस कीड़े के षिषु और प्रौढ़ दोनों ही कोषिकाओं का रस चूसते हैं इससे कलियां मुरझाकर गिर जाती हैं फूलों का आकार बढ़ता नहीं हैं और उनका आकार विकृत हो जाता हैं।
उपचार- कीट दिखने पर रोगोर (डायमिथिलिट) अथवा मैलाथियान दवा का स्प्रे 2 मि.ली. दवा प्रति लीटर के हिसाब से छिड़काव करें। या एक मिली लीटर मेटासिड (मिथिाइल पैराथियान) को 1 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।थ्रिप्स- यह कीट फूलों को बहुत नुकसान पहुंचाता हैं। वयस्क थ्रिप्स काले एवं भूरे रंग के तथा षिषु लाल रंग के होते हैं ये मार्च से नवम्बर तक पत्तियों की निचली सतह पर दिखाई देते हैं। इसके आक्रमण से पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं और पत्तियां सिकुड़ जाती हैं इसी प्रकार कलियां और फूल सिकुड़कर गिर जाते हैं।
उपचार- जब भी गोबर की खाद अथवा पत्ती की खाद का प्रयोग करें तो दवा का प्रयोग सिंचाई के साथ करें अथवा साबुन के घोल में आधा प्याला मिट्टी का तेल डाल कर छिड़काव करें। रोगोर (डायमिथियेट) 2 मिली लीटर दवा 1 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
रेड स्केल- यह एक अत्यंत हानिकारक कीट है जो तेजी से अपनी संख्या बढ़ाने के साथ ही पौधों का रस चूसकर उन्हें बेजान कर देता हैं। स्केल कीट प्रायः पहचानने में भी नहीं आता क्योंकि इसका रंग तने या छाल की तरह होता हैं। भूरे, लाल रंग का कीट पूरे पौधे पर फैलकर तने का रस चूसकर पौधे को मार डालता हैं। इसका प्रकोप जनवरी-फरवरी में कीट द्वारा भूमि के ऊपर पौधों पर चढ़कर होता हैं।
उपचार- ट्राइजाफाॅस 40 ई.सी. एक मिली. प्रति ली. पानी में घोल बनाकर साथ में स्टीकर का उपयोग जरूर करें। कार्बोरिल का भी छिड़काव कर सकते हैं। इसके 2 दिन बाद कैप्टन 0.2 प्रतिशत का स्प्रे करना काफी लाभदायक रहता हैं। कम पौधे हों तो स्प्रिट या मिट्टी के तेल में डाइक्लोरोवास दवा सूती कपडे़ में भिगोकर रगड़ कर साफ कर दें इसे अत्यंत गंभीरता से ले और नियंत्रित करें।
चैपर बीटल- वयस्क कीड़े रात में पत्तियों पर जगह-जगह छिद्र हो जाते हैं।
उपचार- पेराथियान दवा 1 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें।
जैसिड्स- जैसिड कीट बहुत महीन हल्के भूरे अथवा हरे पीले रंग के होते हैं। पत्तियों की ऊपरी सतह पर चिपक कर उसका रस चूसते हैं। अप्रेल-मई में इनकी संख्या बढ़ जाती हैं अथवा रोगोर (डायमिथियेट) 1 मिली लीटर दवा प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए।
इअर विग (कर्ण कीट)- ये कीट रात के समय पुष्पों की कोमल पंखुड़ियां खा जाते हैं।
उपचार- कार्बोरिल दवा का छिड़काव करें।
ब्रिसटली रोज स्लग्स- इस कीट के लार्वा पत्तियों के निचले भाग को खाकर बड़े छिद्र बना देते हैं। इन्हें (केन बोरर) तना छेदक, पणऊ कीट या रोज कैटरपिलर कहते हैं। यह साफ्लाईस मक्खी कीट के लार्वा हैं यह हार्स फ्लाई जैसे दिखते हैं इनके 4 पंख होते हैं ये 1/2 इंच लम्बे, हरे-सफेद रंग के कीड़े बस जैसे बालों से ढ़के रहते हैं। इनका आक्रमण बसंत में होता हैं।
उपचार- पत्तियों पर मैलाथियान या कार्बोरिल का छिड़काव बसंत आगमन से पूर्व 2-3 बार 15 दिन के अंतराल से करें।
निमेटोड (सूत्रकृमि)- ये सूक्ष्म आकार के होते हैं। इनका आक्रमण जड़ क्षेत्र को प्रभावित करता है पौधे कमजोर होने के साथ-साथ उनकी बढ़ोत्तरी रुक जाती हैं। फूल नहीं बनते, पत्तियां पीली पड़ जाती हैं। निमेटोड नाम के ये जीव रंग विहीन होते हैं, यह जड़ो के साथ तने पत्तों व कलियों पर भी संक्रमण कर जीवाणु फैलाते हैं।
उपचार- फ्यूराडान अथवा निमागोन दवा पौधों की रोपाई से 4-6 सप्ताह पहले क्यारियों में सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करें।
कैटरपिलर (सुंडियां)- ये भूरे रंग की सुंडियां पत्तियां खाती हैं।
उपचार- सप्ताह में एक बार कार्बोरिल का छिड़काव करें। सवंमित कलियों और पत्तियों को जला दें।
रोज मिसीज- ये बहुत छोटे कीड़े होते हैं नर अथवा मादा वयस्क भुनगे की तरह उड़ने वाले और मटमैले, पीले या लाल रंग के होते हैं। ये पत्तियों, कलियों पर अंडे देते हैं इनका लार्वा इन पत्तियों और कलियों को खा जाते हैं। लार्वा एक सप्ताह में पूर्ण वयस्क बन जाता हैं।
उपचार- फूल खिलने पर कार्बोरिल, मैलाथियानद दवा का छिड़काव करें।
स्पाइडर माइट्स- गुलाब पर रेडस्पाइडर माइट्स आक्रमण करती हैं। पत्ती के निचले भाग में रेषमी धागों का जाला सा बुनती हैं जिससे पत्ते पीले भूरे होकर सूख कर गिर जाते हैं। सितम्बर से जनवरी तक यह सक्रिय रहते हैं। लाल रंग की रेड स्पाइडर माइट्स (टेटरानाइचस प्रजाति) पत्तों को ढ़के रहते हैं। रस चूसने के पश्चात पत्तों का विकास रूक जाता हैं और वे गिर जाते हैं।
उपचार- पत्तों पर 0.05 प्रतिशत पैराथ्यिान, 5 लीटर पानी में एक महीने के अंतर से 2 बार छिड़काव करें या इथियान को 4 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।